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आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिग और क्ववारंटिन में अंतर जानें और किसको किसकी ज़रुरत है ?

Published On: 28 Nov, 2021 7:03 AM | Updated On: 21 Dec, 2024 9:35 PM

आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिग और क्ववारंटिन में अंतर जानें और किसको किसकी ज़रुरत है ?

कोरोना वायरस ने अभी तक पूरे देश में 429 लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है । बीते दो दिनों के अंदर कोरोना वायरस के कम से कम 100 से अधिक मामले सामने आ गए हैं । इसका अर्थ है कि कोरोना ने अब रफ्तार पकड़ ली है । 

अगर देश में कोरोना के मामले देखें तो पहले कुछ दिनों में एक और 2 ही केस थे, लेकिन धीरे-धीरे इस वायरस ने अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है। सबसे ज्यादा केस महाराष्ट्र से आए हैं और बाकि महानगर भी इससे प्रभावित हैं।

क्या हैं इलाज?

अभी तक कोरोना वायरस का कोई उपचार सामने नहीं आया है लेकिन कुछ सावधानियां और तरीके ज़रुर हैं जिनसे कोरोना वायरस से बचा जा सकता है –

क्वारंटिन :

क्वारंटिन यानि खुद को ज़ब्त कर लेना या खुद को एक सीमित दायरे में रखकर बचाव करने को कहते हैं । लेकिन लोग अभी तक इसे समझ नहीं पाए हैं। लोगों को लगता है कि क्वारंटिन का मतलब पूरी तरह नज़रबंद हो जाना या किसी तरह की कैद में हो जाना है । 

इस समय जब कोरोना वायरस अपने चरम पर है और पूरी तरह फैलने की कोशिश कर रहा है तो उस समय स्वंय को क्वारंटिन कर लेना सबसे बेहतर उपचार है । 

कौन-कौन कर सकता है क्वारंटिन ?

हां, इस बात पर अवश्य ध्यान दें कि क्वारंटिन किस श्रेणी के लोगों के लिए है यानि वो कौन से लोग हैं जो क्वारंटिन कर सकते हैं ?

जिन लोगों को किसी प्रकार की खांसी, छींके आ रही हों या नहीं भी आ रही हों, वह लोग खुद को क्वारंटिन कर सकते हैं क्योंकि छींके और खांसी आना सामान्य मौसमी फ्लू है और कुछ नहीं। लेकिन अगर तेज़ बुखार के साथ खांसी है तो क्वारंटिन न हों और जल्द से जल्द नज़दीकी अस्पताल से संपर्क करें और जितना हो सके परिवार वालों से दूर रहें । 

आइसोलेट :

क्वारंटिन की ही तरह आइसोलेट करना भी कोरोना वायरस से बचे रहने का महत्वपूर्ण और सटीक तरीका है । लोगों के भीतर आइसोलेशन को लेकर बहुत सी भ्रांतियां हैं लेकिन लोगों को इन भ्रांतियों को तोड़ना होगा और यह बात सभी को मालूम होनी चाहिए कि आइसोलेशन का वास्तविक अर्थ क्या है ?

आइसोलेशन का मतलब किसी भी तरह कैद हो जाना या किसी प्रकार की गिरफ्तारी नहीं है।

आइसोलेशन का सीधा मतलब सिर्फ अलग रहना या खुद को अलग कर लेना है। यानि अगर किसी व्यक्ति में बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो वह खुद को कुछ समय के लिए परिवार और समाज से अलग कर ले । 

आइसोलेशन में किसी प्रकार की कोई दिक्कत या परेशानी नहीं है । बस, विशेष ध्यान दिया जाता है । 

आइसोलेशन में निगरानी रखी जाती है क्योंकि आपके लक्षण को समय-समय पर जांचा जाता है। 

कौन-कौन हो सकता है आइसोलेट 

आइसोलेट हर वो इंसान होगा जिसमें कोरोना संक्रमण जैसे लक्षण पाए जाएंगे । क्योंकि कोरोना संक्रमण व्यक्ति से व्यक्ति फैलता है और हर तरह के स्पर्श द्वारा फैल सकता है ।

इसीलिए हर वो व्यक्ति जिसमें बीमारी के लक्षण दिख रहे हैं, फौरन खुद को आइसोलेट करना आवश्यक है । इसलिए आइसोलेशन की आवश्यकता सिर्फ उन्हें है जिनमें लक्षण दिख रहे हैं। 

सोशल डिस्टेंसिग यानी सामाजिक दूरी:

सोशल डिस्टेंसिंग जागरुकता का ही एक रुप है । ऐसे समय में जब कोरोना वायरस का कहर चारों ओर फैला हुआ है, सोशल डिस्टेंसिंग एक ऐसा हथियार है जो संक्रमण को फैलने से बचा सकता है। सोशल डिस्टेंसिंग का सीधा अर्थ है समाज से दूरी यानि आप समाज में ज़रुर जाएं लेकिन सबसे एक उचित दूरी बनाए रखें । किसी से हाथ न मिलाएं बल्कि हाथ जोड़कर अभिवादन दें और स्वीकार करें ।

कौन-कौन करे सोशल डिस्टेंसिंग 

सोशल डिस्टेंसिंग इस समय हर व्यक्ति करे । जो बिल्कुल ठीक हैं, जिसे थोड़ी बहुत सर्दी है, जिसे खांसी, जुकाम है, जिसे बुखार है या जिसे कुछ और लक्षण हैं ।

देखने वाली यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग इस समय कोरोना वायरस से बचे रहने के लिए एक मज़बूत हथियार है । केवल बाहर ही नहीं, बल्कि घर के भीतर भी परिवार वालों से दूरी बनाए रखें । 

इस समय कोरोना वायरस से पूरी दुनिया में तकरीबन 90 हजार लोगों की जानें जा चुकी हैं और भारत में इसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन और क्वारंटिन एक ऐसे हथियार हैं जिनसे कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है । 

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