डायबिटिक नेफ्रोपैथी – विस्तार से जाने | Diabetic Nephropathy in Hindi

Written By: user Mr. Ravi Nirwal
Published On: 01 Mar, 2022 11:24 AM | Updated On: 19 May, 2024 6:14 AM

डायबिटिक नेफ्रोपैथी – विस्तार से जाने | Diabetic Nephropathy in Hindi

क्या आपने कभी सोचा है कि आपके मीठा खाने की आदत या डायबिटीज की वजह से एक दिन आपकी किडनी खराब कर सकती है? अगर आप बहुत ज्यादा मात्रा में मीठा खाते है या फिर आप लंबे समय से मधुमेह यानि डायबिटीज से जूझ रहे हैं तो इससे एक दिन आपकी किडनी खराब हो सकती है। भारत में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जो कि डायबिटीज से जूझ रहे हैं या फिर बहुत ज्यादा मीठा खाने के शौक़ीन है। अगर आप भी इन्हीं लोगों में शामिल है तो आपको भी डायबिटिक नेफ्रोपैथी होने का खतरा है। डायबिटिक नेफ्रोपैथी और कुछ नहीं बल्कि किडनी फेल्योर है यानि किडनी फेल होना। चलिए Medtalks पर लिखे इस लेख के जरिये इस विषय में विस्तार से जानते हैं। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी क्या है? What is diabetic nephropathy? – in hindi 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी या मधुमेह अपवृक्कता (diabetic nephropathy) एक तरह का क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी – CKD) है। इस क्रोनिक किडनी डिजीज में व्यक्ति की किडनी डायबिटीज की वजह से खराब हो जाती है, जिसमें काफी लंबा समय लगता है। यह एक दीर्घकालिक किडनी रोग (long-term kidney disease) है। किडनी फेल्योर का यह प्रकार टाइप 1, टाइप 2, या गर्भकालीन डायबिटीज से जूझने वाले व्यक्तियों को हो सकता है। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी के कितने चरण हैं? What are the stages of diabetic nephropathy? 

एक्यूट किडनी डिजीज के अलावा किडनी खराब होने में काफी लंबा समय लगता है जिसे 5 चरणों में विभाजित किया जा सकता है। अन्य क्रोनिक किडनी डिजीज की ही तरह डायबिटिक नेफ्रोपैथी में भी किडनी 5 चरणों में खराब होती है जिसे ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (जीएफआर) Glomerular filtration rate (GFR) स्तर के आधार पर चरणों में बांटा जाता है। जैसे-जैसे GFR स्तर गिरता है वैसे-वैसे किडनी खराब होती रहती है या कहें कि किडनी फेल्योर का स्टेज पता लगता है। आप निम्न सारणी की मदद से इसे समझ सकते हैं :-

चरण

GFR  स्तर

किडनी की कार्यक्षमता

1

90+

इस चरण में किडनी खराब नहीं हुई

2

89-60

इस चरण में किडनी खराब होने लगी है पर लक्षण नहीं दिखाई देते

3

59-30

इस चरण में किडनी से जुड़ी समस्याएँ दिखाई देने लगती है लेकिन वह बहुत थोड़ी होती है, जैसे – पेशाब से जुड़ी समस्याएँ या कमजोरी

4

29-15

इस दौरान किडनी खराब होने के लक्षण खुलकर दिखाई देने लगते हैं और रोगी को उपचार लेने की जरूरत शुरू हो जाती है

5

15 से कम

यह सबसे अंतिम चरण है और यहाँ रोगी को डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है


90 या उससे अधिक का GFR सामान्य श्रेणी में होता है। 60 से नीचे जीएफआर का मतलब किडनी की बीमारी हो सकती है। 15 या इससे कम जीएफआर का मतलब किडनी फेल होना हो सकता है।


डायबिटिक नेफ्रोपैथी के लक्षण क्या है? What are the symptoms of diabetic nephropathy?

अगर आप लने समय से डायबिटीज से जूझ रहे हैं तो आपको नियमित रूप से शुगर लेवल की जांच करते रहना चाहिए। अगर आप देखते हैं कि आपका शुगर लेवल दवाएं और इन्सुलिन लेने के बाद भी लगातार बढ़ा हुआ है तो यह डायबिटिक नेफ्रोपैथी का सबसे स्पष्ट लक्षण है। डायबिटिक नेफ्रोपैथी के लक्षणों निम्नलिखित है :- 

  1. हाई ब्लड प्रेशर 

  2. हाथ-पैर और चेहरे पर सूजन आना

  3. पेशाब सामान्य से कम आना 

  4. पेशाब से बदबू आना 

  5. झागदार पेशाब आना – यह प्रोटीन लोस का लक्षण है 

  6. आँखे कमजोर होना 

  7. भूख न लगना, जिसकी वजह से कमजोरी होना

  8. रक्त शर्करा स्तर का लगातार बढ़ना

  9. सामान्य से गाढ़ा पेशाब आना 

  10. रक्त से जुड़ी समस्या होना जैसे – रक्त गाढ़ा होना, रक्त में थक्का जमना, रक्त के रंग में परिवर्तन आदि

  11. अचानक या लगातार रक्त शर्करा का स्तर गिरना। इस स्थिति में रोगी को लगता है कि मधुमेह काबू में आ रहा है, जिसके कारण वह औषधियों को त्याग देता, लेकिन यह किडनी खराब होने का एक साफ संकेत है।

अगर आप डायबिटीज से जूझ रहे हैं और उपरोक्त लक्षणों को महसूस कर रहे हैं तो आपको जल्द से जल्द अपनी किडनी की जांच करवानी चाहिए।  

डायबिटिक नेफ्रोपैथी होने का कारण क्या है? What causes diabetic nephropathy? 

किडनियां हमारे शरीर में सभी तरल उत्पादों और सोडियम के साथ-साथ अन्य जरूरी और गैर जरूरी उत्पादों के बीच संतुलन बनाने का काम करती है। अपना यह काम किडनी नेफ्रॉन की सहायता से करती है जो कि बहुत छोटी संरचनाए होती है और फ़िल्टर की तरह काम करती है। किडनी अपना छानने का काम इनकी मदद से करते हैं। नेफ्रॉन दोनों किडनियों में लाखों की संख्या में होते हैं और यह काफी नाजुक होते है अगर एक बार यह खराब होना शुरू हो जाए या खराब हो जाए तो इन्हें फिर से ठीक कर पाना ना के बराबर होता है।

किडनी जब नेफ्रॉन की मदद से रक्त शोधन (blood purification) करती है तो इस क्रिया में रक्त में मौजूद सभी अपशिष्ट उत्पाद नेफ्रॉन की मदद से अलग हो जाते हैं और पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकल जाते हैं। अब साफ़ हुए इस रक्त को किडनी दिल तक पहुंचा देती है जहाँ से दिल उसे पुरे शरीर में पंप कर देता हैं। लेकिन, जब कोई व्यक्ति डायबिटीज से जूझता है तो उस दौरान उस व्यक्ति के शरीर में इन्सुलिन या तो ठीक से काम नहीं कर रहा होता है या इन्सुलिन ठीक मात्रा में नहीं बन रहा होता। इस वजह से रक्त में ग्लुगोज की मात्रा बढ़ने लग जाती है और रक्त गाढ़ा या सिरप जैसा बन जाता है। ऐसे में जब इतना गाढ़ा रक्त किडनी के नेफ्रॉनस (nephron) के जरिये साफ़ होने आता है तो धीरे-धीरे नेफ्रॉनस डैमेज होने लगते हैं और आखिर में नेफ्रॉनस डैमेज होने की वजह किडनी खराब हो जाती है। इसे ही डायबिटिक नेफ्रोपैथी या मधुमेह अपवृक्कता (diabetic nephropathy) के नाम से जाना जाता है। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी के जोखिम कारक क्या है? What are the risk factors for diabetic nephropathy?

डायबिटीज खुद में किडनी रोग का एक जोखिम कारक है, लेकिन इस रोग में निम्नलिखित कारक किडनी खराब होने की आशंका को बढ़ा सकते हैं :- 

  1. इन्सुलिन की जरूरत लगातार बढ़ते रहना 

  2. कम उम्र में हुआ डायबिटीज हुआ हो या लंबे समय से इस रोग से जूझ रहें हो

  3. ब्लड में शुगर लेवल लगातार बढ़ते रहना 

  4. बार-बार ब्लड शुगर का संतुलन बिगड़ते रहना 

  5. पेशाब में प्रोटीन और बढ़ा हुआ सीरम लिपिड डायाबिटिक आना

  6. डायबिटीज के साथ-साथ मोटापा हों

  7. डायबिटीज में  धूम्रपान और शराब का सेवन करना 

  8. परिवार में पहले किसी को किडनी रोग हुआ हो 

  9. डायबिटीज में लगातार पेशाब या सूजन की समस्या रहना 

  10. डायबिटीज में खाना कम लेना और पानी बहुत कम पीने की आदत 

क्या डायबिटिक नेफ्रोपैथी के कारण हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है? Can diabetic nephropathy cause high blood pressure? 

हाँ, डायबिटिक नेफ्रोपैथी की वजह से हाइपरटेंशन यानि हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। बाकी तरह से किडनी खराब होने पर भी किडनी अपना काम ठीक से नहीं कर पाती और उसकी वजह से ब्लड में सोडियम के साथ-साथ बाकी अन्य अपशिष्ट उत्पादों की मात्रा बढ़ने लगती है जिसकी वजह से ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है। डायबिटीज से उत्पन्न पेरिफेरल वासोकोंस्ट्रीक्श्न के विघटन (Disruption of generated peripheral vasoconstriction) से भी हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ जाता है। अगर इस दौरान किडनी रोगी को पेशाब ठीक से आने लगे तो ऐसे में ब्लड प्रेशर को काबू किया जा सकता है। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी का निदान कैसे किया जाता है? How is diabetic nephropathy diagnosed? 

अगर आप उपरोक्त बताए गये लक्षणों को महसूस कर रहे हैं तो आपको इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए। किडनी फेल्योर की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर आपको कुछ जांच करवाने के लिए कह सकते हैं, जिससे इस बारे में स्पष्ट हो जाए कि आपकी किडनी खराब है या नहीं और अगर है तो कौन सा स्टेज या चरण चल रहा है। किडनी की जांच को किडनी फंशन टेस्ट यानि KFT कहा जाता है, जिसमे खून, पेशाब के साथ-साथ और भी कई जांच की जाती है जिससे किडनी की कार्यक्षमता के बारे में जानकारी मिलती है। किडनी फंशन टेस्ट KFT में शामिल है :- 

माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया मूत्र परीक्षण Microalbuminuria urine test – एक माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया मूत्र परीक्षण आपके मूत्र में एल्ब्यूमिन की जांच करता है। सामान्य मूत्र में एल्ब्यूमिन नहीं होता है, इसलिए आपके मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति गुर्दे की क्षति का संकेत है।

बन रक्त परीक्षण BUN blood test – BUN रक्त परीक्षण आपके रक्त में यूरिया नाइट्रोजन की उपस्थिति की जाँच करता है। प्रोटीन के टूटने पर यूरिया नाइट्रोजन बनता है। आपके रक्त में यूरिया नाइट्रोजन का सामान्य स्तर से अधिक होना गुर्दे की विफलता का संकेत हो सकता है

सीरम क्रिएटिनिन रक्त और पेशाब परीक्षण Serum creatinine blood and urine test – एक सीरम क्रिएटिनिन रक्त परीक्षण आपके रक्त में क्रिएटिनिन के स्तर को मापने काम करता है। आपकी किडनी मूत्राशय (urinary bladder) में क्रिएटिनिन भेजकर उसे पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देरी है। लेकिन अगर आपकी किडनी खराब है तो ऐसे में किडनी क्रिएटिनिन को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर नहीं निकाल नहीं पाती और उसकी मात्रा खून में बढ़ने लग जाती है। 

ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (जीएफआर) Glomerular filtration rate (GFR) – इस जाँच की मदद से किडनी की कार्यक्षमता जाँची जाती है और यह पता लगाया जाता है किडनी फेल्योर कौन से स्टेज पर है। 

किडनी बायोप्सी Kidney biopsy – यदि आपके डॉक्टर को संदेह है कि आपको डायबिटिक नेफ्रोपैथी है, तो वह किडनी बायोप्सी करवाने की सलाह दे सकते हैं। एक किडनी बायोप्सी एक शल्य प्रक्रिया है जिसमें आपके एक या दोनों किडनी का एक छोटा सा नमूना हटा दिया जाता है, इसलिए इसे माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जा सकता है। बायोप्सी अकेले किडनी की ही नहीं की जाती बल्कि शरीर के बाकी अंगों की बायोप्सी जांच की जा सकती है। लेकिन यह जांच काफी गंभीर होती है, इसलिए इस जांच करवाने से अक्सर डॉक्टर बचते हैं, क्योंकि इस जांच की वजह से रोगी की स्थिति काफी गंभीर हो जाती है। इसलिए इसे अंतिम जाँच के रूप में भी देखा जाता है। 

इन सभी जांचों के साथ-साथ डॉक्टर किडनी रोगी को एक्स-रे जांच और अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए भी कह सकते हैं। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी का उपचार कैसे किया जा सकता है? How can diabetic nephropathy be treated? 

अगर एक बार यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी व्यक्ति को डायबिटिक नेफ्रोपैथी है तो उसको निम्न वर्णित तरीकों से उपचार दिया जा सकता है। लेकिन उपचार शुरू करने से पहले इस बारे में ध्यान रखा जाता है कि किडनी फेल्योर अभी कौन से स्टेज पर है। किडनी फेल्योर का उपचार काफी जटिल होता है क्योंकि जब तक किडनी खराब होने की जानकारी मिलती है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और सामान्य तौर पर इसकी जानकारी तीसरे स्टेज पर ही मिलती है। वहीं किडनी फेल्योर में दी जाने वाली दवाएं उसके लक्षणों को काबू करने के लिए दी जाती है न कि किडनी के लिए। इसलिए अगर आपकी किडनी खराब हो चुकी है तो जल्द से जल्द इसका उपचार निम्न वर्णित तरीकों से शुरू कर देना चाहिए :- 

दवाएं medicines – शुरूआती चरण में डॉक्टर आपको कुछ दवाएं दे सकते हैं जिससे आपका ब्लड शुगर लेवल काबू में आने लगे। इसके लिए आपको डॉक्टर इन्सुलिन इंजेक्शन या दवाएं दे सकते हैं, अगर आप पहले से ही इन्सुलिन ले रहे हैं डॉक्टर उसकी खुराक बढ़ाने की सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा डॉक्टर आपको ब्लड प्रेशर कण्ट्रोल करने के लिए भी दवाएं दे सकते हैं। इसके अलावा बाकी समस्याओं के लिए कोई दवाए नहीं दी जाती। 

डायलिसिस dialysisडायलिसिस एक तरह की कृत्रिम प्रक्रिया (artificial process) है जो कि किडनी खराब होने के बाद करवाया जाता है। हमारी किडनी अपनी कार्य करने की क्षमता के हिसाब से काम करने की प्रक्रिया को धीमा कर देती है या पूरी तरह से बंद कर देती है, जिस कारण शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लग जाते हैं। शरीर के भीतर से पूरी तरह से विषैले पदार्थ का बाहर न निकल पाना, क्रिएटिनिन और यूरिया जैसे पदार्थो लगातार शरीर में बढ़ना किडनी फेल्योर की ओर संकेत करता है। किडनी फेल्योर की वजह से कई अन्य प्रकार की भी समस्याएं शरीर में उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में मशीनों की मदद से खून को साफ करने की प्रक्रिया को डायलिसिस कहा जाता है।

जब भी किसी कारण किडनी की कोई समस्या होती है तब मरीज के शरीर में पानी इकठ्ठा होने लगता है जिसे पहले डॉक्टर दवा देकर ठीक करने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन अगर फायदा नहीं होता तो डायलिसिस करवाने की सलाह देते हैं। डायलिसिस किडनी फेल्योर के आखिरी स्टेज पर करवाना जरूरी हो जाता है और अगर किडनी रोगी के शरीर में पोटैशियम का स्तर 4 mg/dl से ज्यादा पहुँच जाए तो भी जल्द से जल्द डायलिसिस करवाना पड़ता है। अगर पोटैशियम 4 mg/dl तक पहुँचने पर नहीं करवाया जाए तो ऐसे में किडनी रोगी को दिल से जुड़ी समस्याएँ होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। 

किडनी प्रत्यारोपण kidney transplant – किडनी ट्रांसप्लांट आम तौर पर उन रोगियों का किया जाता है जो किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी के अंतिम चरण में होते हैं। यह मुख्य रूप से तब किया जाता है जब दवाएं और डायलिसिस करवाने से भी रोगी को कोई फायदा नहीं मिलता। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद संक्रमण होने के साथ-साथ और भी कई शारीरिक समस्याएँ होने का खतरा रहता है। संक्रमण होने के कारण श्वेत रक्त कोशिकाएं (White blood cell) शरीर में  रोगप्रतिरोधी पदार्थ (disease resistant substances) यानि एंटीबाडी बनाते हैं। यह एन्टिबॉडीस जीवाणु से संघर्ष करके उसे नष्ट कर देते हैं। इसी प्रकार नई लगाई गई किडनी बाहर की होने के कारण मरीज के श्वेत रक्त कोशिकाएं में बने एन्टिबॉडीस किडनी को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इस प्रकार नुकसान के कारण नई किडनी खराब हो जाती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में किडनी रिजेक्शन (kidney rejection) कहा जाता है। किडनी की अस्वीकृति, ट्रांसप्लांट के बाद किसी भी समय हो सकती है। प्रायः यह पहले छः माह में होती है। अस्वीकृति की गंभीरता हर रोगी में अलग होती है। प्रायः किडनी की अस्वीकृति होना किसी विशेष कारण से नहीं होता है और इसका इलाज उचित इम्युनोसप्रेसेन्ट (immunosuppressant) चिकित्सा द्वारा हो जाता है। पर कुछ रोगियों में किडनी की अस्वीकृति होना गंभीर हो सकता है और जो अंत में किडनी को नष्ट कर सकता है। 

आहार और दिनचर्या में परिवर्तन Diet and routine changes – इन सभी के साथ-साथ किडनी रोगी को दिनचर्या और आहार में कुछ परिवर्तन करने की सलाह भी दी जाती है जो कि दवाओं से ज्यादा फायदेमंद साबित होते हैं। 

  1. प्रोटीन का सेवन सीमित करना

  2. ज्यादा तले हुए आहार से दूरी बनाए। दिन भर में सिर्फ दो से तीन टेबल स्पून तेल का ही इस्तेमाल करें।

  3. दिन भर में नमक की मात्रा को बहुत ज्यादा सिमित करना। 

  4. मीठे से बिलकुल दूरी बना कर रखनी चाहिए। सिर्फ फलों से ही मीठे की पूर्ति करें। 

  5. केवल दिन के समय ही फलों का सेवन करें। क्योंकि रात के समय फलों के सेवन से सर्दी और बुखार होने की आशंका बनी रहती है। 

  6. पोटेशियम की खपत को सीमित करना, जिसमें केले, एवोकाडो और पालक जैसे उच्च पोटेशियम खाद्य पदार्थों के सेवन को कम करना या प्रतिबंधित करना शामिल हो सकता है।

  7. फॉस्फोरस में उच्च खाद्य पदार्थों की खपत को सीमित करना, जैसे कि दही, दूध और प्रसंस्कृत मांस। 

  8. शरीर में प्रोटीन की कमी के लिए केवल एक ही चीज़ का सेवन करें। 

  9. दिन भर में सिमित मात्रा में ही पानी लें, अगर ज्यादा मात्रा में लिया तो इससे सूजन बढ़ सकती है। 

  10. आनाज में केवल गेंहू, चावल, और मूंग दाल का ही इस्तेमाल करें। 

  11. मैदा और मैदे से बने सभी उत्पादों से दूरी बना कर रखें। 

  12. शराब, धूम्रपान के साथ-साथ बाकी तरह से भी तम्बाकू के सेवन से दूर रहें। 

  13. लाल मांस से दूर रहें। डायलिसिस वाले दिन डॉक्टर की सलाह अंडे का सफ़ेद भाग, चिकन या मछली का सेवन किया जा सकता है। इसकी मात्रा कितनी ली जा सकती है इस बारे में डॉक्टर रिपोर्ट्स के आधार पर बता सकते हैं। 

  14. किसी भी तरह का डिब्बाबंद आहार का सेवन न करें। इसकी वजह से आपका ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। 

  15. किडनी रोगी को कभी भी किसी भी तरह के जूस का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने लगती है जो कि सूजन का कारण बनता है। 

क्या डायबिटिक नेफ्रोपैथी को ठीक किया जा सकता है? Can diabetic nephropathy be cured? 

नहीं, खराब हुई किडनी को कभी भी ठीक नहीं किया जा सकता। हमने आपको शुरुआत में बताया कि किडनी नेफ्रॉन के डैमेज होने कि वजह से खराब होती है और एक बार नेफ्रॉन खराब हो जाए तो उसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता। हाँ, लेकिन दवाओं और कुछ परहेजों की मदद से उसके खराब होने की गति को धीमा किया जा सकता है। किडनी रोग को ठीक न किये जाने का एक और कारण यह भी है कि जब तक इस बारे में जानकारी मिलती है तब तक किडनी करीब 60 प्रतिशत तक खराब हो चुकी होती है, स्टेज के हिसाब से देखा जाए तो इस दौरान व्यक्ति किडनी फेल्योर के तीसरे स्टेज पर होता है और वह जल्द ही चौथे स्टेज पर पहुँचने वाला होता है।  ठीक इसी प्रकार जब तक डायबिटिक नेफ्रोपैथी का पता चलता है जब तक काफी देर हो चुकी होती है और इसी वजह से इसे ठीक नहीं किया जा सकता। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिन लोगों की किडनी डायबिटीज की वजह से खराब होती है उन्हें सबसे ज्यादा डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। हाँ, अगर डायबिटिक नेफ्रोपैथी के साथ-साथ दुसरे तरह के किडनी फेल्योर के बारे में शुरुआत स्टेज पर ही जानकारी मिल जाए तो उससे बचना काफी आसान हो जाता है। ऐसे में दवाओं और अन्य उपायों की मदद से किडनी खराब होने की गति को बहुत ज्यादा धीमा किया जा सकता है। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी से बचने के लिए क्या करें? What to do to avoid diabetic nephropathy? 

यदि आप काफी लंबे समय से डायबिटीज के किसी भी प्रकार से जूझ रहे हैं तो आपके ऊपर डायबिटिक नेफ्रोपैथी यानि मधुमेह के कारण किडनी खराब होने का खतरा बना रहता है। डायबिटीज होने का यह मतलब बिलकुल नहीं है कि आपकी किडनी खराब होगी ही, यह तब होता है जब आप डायबिटीज से काफी लंबे समय से जूझ रहे हो और साथ ही आप उसे काबू में नहीं रखते हो। ऐसे में अगर आप अपनी किडनी को खराब होने से बचाना चाहते हैं तो आप निम्नलिखित कुछ खास उपायों की मदद से डायबिटिक नेफ्रोपैथी के खतरे को टाल सकते हैं :- 

  1. अपने ब्लड शुगर लेवल को हमेशा काबू में रखें और कोशिश करें कि वह न बढ़े। 

  2. अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है तो उसे भी काबू में रखें और अगर नहीं है तो इस समस्या को होने न दें। 

  3. यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो उसे जल्द से जल्द छोड़ दें। धूम्रपान छोड़ने के लिए आप डॉक्टर और परिवार की सहायता लें सकते हैं।।

  4. यदि आप अधिक वजन वाले या मोटे हैं तो वजन कम करें। वजन कम करने के लिए आप कोई भी उपाय अपना सकते हैं, बस ध्यान रहे कि आप ऐसा कोई उपाय न अपनाएं जिससे आपको दूसरी समाया होनी शुरू हो जाए।

  5. मीठे से दूरी बना कर रखें। इसकी जगह आप फलों का सेवन करें। अगर आपको फिर भी मीठा खाने की इच्छा होती है तो रिफाइंड चीनी की जगह गुड का इस्तेमाल करें।

  6. एक स्वस्थ आहार बनाए रखें जिसमें सोडियम की मात्रा कम हो। ताजा या जमे हुए उत्पाद, लीन मीट, साबुत अनाज और स्वस्थ वसा खाने पर ध्यान दें। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन सीमित करें जो नमक और खाली कैलोरी से भरे जा सकते हैं।

  7. व्यायाम को अपनी दिनचर्या का नियमित हिस्सा बनाएं। धीरे-धीरे शुरू करें और अपने लिए सबसे अच्छा व्यायाम कार्यक्रम निर्धारित करने के लिए अपने डॉक्टर के साथ काम करना सुनिश्चित करें। व्यायाम आपको स्वस्थ वजन बनाए रखने और आपके रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है। 

  8. इन्सुलिन पर निर्भरता कम करें। अगर आप इन्सुलिन लेते हैं तो आप इस बारे में अपने डॉक्टर से बात करें और ऐसे उपायों की मदद लें जिससे इन्सुलिन के इंजेक्शन लेने की आवयश्कता न पड़े या कम हो जाए।

  9. किडनी को स्वस्थ रखने के लिए दिन भर में प्राप्त मात्रा में पानी लें। पानी लेने से आपको पेशाब से जुड़ी समस्याएँ नहीं होगी जो कि डायबिटीज होने पर अक्सर हो जाती है। 

  10. शराब का सेवन बिलकुल न करें। शराब पीने से शुगर लेवल का संतुलन बिगड़ता है जिसको समय के साथ ठीक कर पाना काफी मुश्किल होने लगता है।

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Mr. Ravi Nirwal

Mr. Ravi Nirwal is a Medical Content Writer at IJCP Group with over 6 years of experience. He specializes in creating engaging content for the healthcare industry, with a focus on Ayurveda and clinical studies. Ravi has worked with prestigious organizations such as Karma Ayurveda and the IJCP, where he has honed his skills in translating complex medical concepts into accessible content. His commitment to accuracy and his ability to craft compelling narratives make him a sought-after writer in the field.

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