किसी भी महामारी के साथ जंग में वैक्सीन एक बड़ा हथियार है और आज कोरोना महामारी को रोकने लिए दुनिया के तमाम देशो में टीकाकरण अभियान को चलाया जा रहा है, वैक्सीन को लेकर लोगो के मन में जो शक, और सवाल है उसकी यहाँ व्याख्या करेंगे की आखिर वैक्सीन क्या है और भारत के दो प्रमुख वैक्सीन में क्या अंतर है।
वैक्सीन एक प्रकार का जैविक दवा है जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करके हमारे शरीर को किसी भी खतरनाक रोगाणु संक्रमण से बचाने का काम करती है।
वैक्सीन एकमात्र उपाय है जो बीमार होने के पहले, उसके कारण से हमें बचाता या तैयार करता है। सरल भाषा में कहे तो वैक्सीन इस बात का भरोसा देता है की हमे संक्रमण नहीं होगा और अगर हुआ भी तो गंभीर नहीं होगा। जैसे की बच्चो को पोलियो की टीका लगता है, जो निश्चित करता है की उनमे पोलियो की बीमारी भविष्य में कभी न हो।
वैक्सीन हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम पर काम करता है क्योकि इम्यून सिस्टम ही हमें किसी भी बीमारी या बाहरी रोगाणु से लड़ने में मदद करता है, यही वजह है की हम छोटे- छोटे कितने संक्रमण से हर रोज़ बचे रहते है जिसका हमे पता भी नहीं चलता।
वैक्सीन इनएक्टिव वायरस या कमजोर रोगाणु से बनाये जाते है जिसको हमारे शरीर में इंजेक्ट किया जाता है, जिसे इम्यून सिस्टम को यह संकेत मिलता है की कोई बाहरी जानलेवा रोगाणु (एंटीजन) शरीर में प्रवेश कर गए है, इसके बाद इम्यून सिस्टम रोगाणु के खिलाफ एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देता है, वैक्सीन लेने के बाद इम्यून सिस्टम अपना काम शुरू करता है जिसमे कई तरह के ब्लड सेल और शरीर के अन्य भाग सहायक होते है जैसे मैक्रोफेज एक तरह वाइट ब्लड सेल जो, कीटाणु या डेड सेल को निगलती है और बी-लिम्फोसाइट्स (वाइट ब्लड सेल) एंटीबॉडी का उत्पादन करते है वायरस से लड़ने के लिए। जब असल में जीवित वायरस से सामना होता है, तो इम्यून सिस्टम का टी-लिम्फोसाइट्स सेल (मेमोरी सेल) इसकी पहचान करता है और बी-लिम्फोसाइट्स एंटीबॉडी के उत्पादन के द्वारा वायरस पर हमला कर देता है। इम्यून सिस्टम संक्रमित वायरस और इस प्रक्रिया को अपने मेमोरी में स्टोर कर लेता है, और भविष्य में कभी भी वही बीमारी होने पर तुरंत प्रतिक्रिया देता है और उसको खत्म करने के लिए एंटीबॉडी पहले से ही मौजूद होते है।
लेकिन इन सब प्रक्रिया और वैक्सीन को सुरक्षा कवच बनाने में थोड़ा वक़्त लगता है इसलिए डॉक्टर कहते है की वैक्सीन लगने के बाद भी हमे सावधानी बरतनी चाहिए। वैक्सीन लगने के बाद थोड़े साइड इफ़ेक्ट जैसे बुखार, चकर आना या सिर दर्द हो सकता जो परेशानी वाली बात नहीं है।
वैक्सीन को प्लेसबो (इनएक्टिव वैक्सीन या दवा) के साथ तुलना कर इसकी क्षमता और प्रभावित पता किया जाता है; वायरस को कई टेस्टिंग और फेज से गुजरना होता है जिसमे इसकी एफ्फिकसी, असर, साइड-इफ़ेक्ट, और कई पहलु को देखा जाता है उसके बाद ही मार्किट में लॉन्च होता है। इसे ज्यादातर इंजेक्शन के माध्यम से बॉडी में देते है।
कोवैक्सीन |
कोविशील्ड |
कोवैक्सीन को हैदराबाद
का भारत बायोटेक इंटरनेशनल कंपनी के द्वारा विकसित किया गया है। |
कोविशील्ड को ऑक्सफ़ोर्ड- अस्ट्रेजेनेका द्वारा
विकसित किया गया,
जो की भारत में सीरम
इंस्टिट्यूट ने बनाया है। |
कोवैक्सीन इनएक्टिवेटेड
वैक्सीन है यानी ये मृत कोरोना वायरस से बना है। |
कोविशील्ड चिम्पांज़ी के
एडेनोवायरस से बना है, ये वीकेंड वायरस है
मतलब इस वायरस के क्षमता को कम कर दिया गया, ये शरीर में जाने के बाद कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। |
एफ्फिकसी - वैक्सीन
कितना प्रभावी और असरदार है। कोवैक्सीन का एफ्फिकसी रेट 81 %, उसके तीसरे चरण के
ट्रायल के अनुसार। |
कोविशील्ड का एफ्फिकसी
रेट 90 % है। इसका मतलब की जिसने
वैक्सीन लिया उसे संक्रमण से 90 फीसदी
तक सुरक्षा मिलेगा न की पूरी आबादी का 90 फीसदी लोग सेफ जोन में होगा। |
इस वैक्सीन को 12 साल और उसके ऊपर वाले
लोग लगा सकते। |
इस वैक्सीन को 18 साल से ऊपर वाले लोग
लगा सकते है। . |
इसके दो डोज़ के बीच 4 से 6 हफ्ते का गैप होना
चाहिए। |
कोविशील्ड के दो डोज़ के
बीच 12 से 16 हफ्ते का गैप होना
चाहिए। |
कोवैक्सीन का दाम सरकार
के लिए 400 रूपए है, और प्राइवेट सेण्टर के
लिए 1200 . |
कोविशील्ड का दाम 300 है सरकार के लिए और 600 प्राइवेट सेंटर के लिए
. |
Miss Shruti has over two years of experience in content writing. Having worked as a content writer and content marketing manager in a media house and also in an IT Company, she is an expert in lifestyle and health blogging.
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