फाइलेरिया क्या है? What is Filariasis (Filaria)?
फाइलेरिया दुनिया भर में विकलांगता और विरूपता बढ़ाने वाला सबसे बड़ा रोग है (इसे एक संक्रमण के रूप में भी देखा जाता है)। यह एक पैरासाइट डिजिट है जो कि धागे के समान दिखाई देने वाले निमेटोड कीड़ों (Nematode Worms) के शरीर में प्रवेश करने की वजह से होती है। निमेटोड कीड़े परजीवी मच्छरों की प्रजातियों (Wuchereria Bancrofti or Rugia Malayi) और खून चूसने वाले कीटों के जरिए इंसान के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इन निमेटोड कीड़ों में फिलेरी वुचरेरिअ बैंक्रोफ्टी (Filariae-Wuchereria Bancrofti), ब्रूगिआ मलाई (Brugia Malayi) और ब्रूगिआ टिमोरि (Brugia Timori) शामिल है। फाइलेरिया मुख्य रूप से वुचरेरिअ बैंक्रोफ्टी (Wuchereria Bancrofti) परजीवी कीड़े की वजह से होता है।
दुनिया भर में फाइलेरिया मुख्य रूप से गरीब लोगों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। फाइलेरिया को फीलपाँव (Elephantiasis), श्लीपद (slippad) के नाम से जाना जाता है। भारत में इसे सामान्य तौर पर हाथी पाँव के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस रोग में व्यक्ति का पाँव हाथी के पाँव की तरह हो जाता है। भारत सरकार का भारतीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Indian Ministry of Health and Family Welfare) इस रोग से लड़ने वालों के लिए मुफ्त उपचार प्रदान करता हैं। अकेले भारत में ही करोड़ों लोगों को फाइलेरिया होने का जोखिम हैं।
फाइलेरिया के कितने प्रकार है? How many types of Filariasis (Filaria) are there?
फाइलेरिया रोग तीन प्रकार का होता है, जिन्हें निचे संक्षिप्त में वर्णित किया गया है :-
लिम्फेटिक फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) : लिम्फेटिक फाइलेरिया, हाथी पाँव का सबसे आम प्रकार है। फाइलेरिया का यह प्रकार वुकेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (Wuchereria Bancrofti), ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi) और ब्रुगिया टीमोरि (Brugia Timori) परजीवियों की वजह से होता है। यह कीड़े लिम्फ नोड्स सहित लसीका प्रणाली (Lymphatic System) को प्रभावित करते हैं। लिम्फेटिक फाइलेरिया को एलीफेनटायसिस (Elephantiasis) के नाम से भी जाना जाता है।
सबक्यूटेनियस फायलेरियासिस (Subcutaneous Filariasis) : सबक्यूटेनियस फायलेरियासिस लोआ लोआ (eye worm), मैनसनैला स्ट्रेप्टोसेरका और ओन्कोसेरका वॉल्वुलस (Onchocerca Volvulus) नामक परजीवियों के कारण हो सकता है। फाइलेरिया का यह प्रकार मुख्य रूप से त्वचा की निचली परत को प्रभावित करता है।
सीरस कैविटी फाइलेरिया (Serous Cavity Filariasis) : सीरस कैविटी फाइलेरिया भी फाइलेरिया के प्रकार की श्रेणी में आता है जो कि सबसे दुर्लभ है।
Note: - सबक्यूटेनियस फायलेरियासिस (Subcutaneous Filariasis) और सीरस कैविटी फाइलेरिया (Serous Cavity Filariasis) फाइलेरिया रोग के सबसे दुर्लभ प्रकार है। फ़िलहाल इन दोनों के बारे में कोई खास जानकारी मौजूद नहीं है, इन दोनों पर शोध जारी है। लिम्फेटिक फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) सबसे आम फाइलेरिया है और इसके विषय में काफी जानकारी है। इस लेख में मुख्य रूप से लिम्फेटिक फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) के बारे में जानकारी दी गई है।
फाइलेरिया रोग कितना गंभीर है? How serious is Filariasis (Filaria)?
हाथी पाँव यानि फाइलेरिया रोग कई तरह से गंभीर है पहला यह कि इसका कोई इलाज मौजूद नहीं है, और दूसरा इसके प्रकार। लेकिन अगर फाइलेरिया रोग के सबसे गंभीर रूप को देखा जाए तो वह निश्चित ही इससे होने वाली कुरूपता है। इस रोग की वजह से व्यक्ति के पाँव और अन्य प्रभावित अंग काफी कुरूप हो जाते हैं, जिसकी वजह से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक दोनों समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रोगी समाज से कटना शुरू हो जाता है और लोगों से मिलना झुलना बंद कर देता है, क्योंकि लोग उन्हें किसी कलंक के रूप में देखते हैं। वहीं, भारत के कई क्षेत्रों में इसे ईश्वरीय प्रकोप के रूप में भी परिभाषित किया जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण है, कम जानकारी।
फाइलेरिया का हर प्रकार अपने आप में गंभीर है और किसी भी प्रकार का कोई सटीक उपचार मौजूद नहीं है, जिसकी मदद से इससे हमेशा के लिए छुटकारा मिल सके। यह लेख लिखे जाने तक इस गंभीर रोग से छुटकारा पाने के लिए कोई टिका या दवा विकसित नहीं की गई है, जिसकी मदद से इससे हमेशा के लिए छुटकारा मिल सके।अगर किसी व्यक्ति को फाइलेरिया का कोई भी प्रकार हो जाता है उसे जीवन भर उसके साथ जीवन बीतना पड़ता है। हाँ, लेकिन कुछ दवाओं की मदद से इसके जोखिम कारकों और लक्षणों से आराम मिल सकता है, लेकिन यह कभी जड़ से खत्म नहीं होता। दवाओं के साथ-साथ फाइलेरिया रोगी को अपने रहन-सहन के तरीके और खान पान में कुछ बदलाव करने की भी जरूरत होती है, जिसकी मदद से रोगी परेशानियों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
फाइलेरिया होने के क्या कारण है? What causes filariasis (Filaria)?
इस लेख के शुरुआत में ही हमने आपको बताया था कि फाइलेरिया निमेटोड परजीवियों की वजह से होता है। निमेटोड परजीवी, मच्छरों और अन्य खून पीने वाले जीवों या कीड़ों की मदद से व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं और फिर फाइलेरिया हो जाता है। इन निमेटोड परजीवियों निम्नलिखित कीड़े शामिल है जिनकी वजह से फाइलेरिया होता है :-
बैन्क्रॉफ्टी (Wuchereria Bancrofti)
ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi)
ब्रुगिया टीमोरि (Brugia Timori)
मैनसोनेल्ला (Mansonella)
ओन्कोसेरका वॉल्वुलस (Onchocerca Volvulus)
फाइलेरिया होने पर क्या लक्षण दिखाई देते हैं? What are the symptoms of filariasis (Filaria)?
हाथी पाँव यानि फाइलेरिया या एलिफेंटियासिस होने पर कई तरह के लक्षण दिखाई देते सकते हैं जो कि इस रोग के हर प्रकार के साथ बदल सकते हैं, लेकिन मुझी रूप से निम्नलिखित प्रकार से ही लक्षण दिखाई देते हैं।
फाइलेरिया होने पर सबसे आम लक्षण शरीर के अंगों में सूजन है। सूजन निम्न में होती है:
पैर
गुप्तांग
स्तनों
बाँह
सूजन सबसे ज्यादा पैर में आती है। पैरों में सूजन और भी कई कारणों की वजह से आ सकती हैं, लेकिन फाइलेरिया होने पर केवल एक ही पैर में सूजन आती है। अगर दुसरे पैर में सूजन आ भी जाए तो वह बहुत ही कम होती है। शरीर के किसी भी बंद आई लगातार बढ़ती रहती है और सूजन वाले हिस्से में दर्द भी हो सकता है।
विशेष ध्यान दें :- अगर किसी महिला के ब्रेस्ट में लगातार सूजन बन रही है तो इसे नजरअंदाज बिल्कुल न करें। यह फाइलेरिया का लक्षण हो सकता है। सूजन बढ़ने की वजह से ब्लड सप्लाई में कमी होने से बैक्टीरियल इंफेक्शन तक हो सकता है। ऐसे में तत्काल डॉक्टर को दिखाना चाहिए क्योंकि फाइलेरिया का कोई इलेाज नहीं होता है।
फाइलेरिया होने पर सूजन के अलावा त्वचा संबंधित निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई देते हैं :-
सूखी त्वचा
त्वचा का सामान्य से ज्यादा मोटा होना
छाले-युक्त त्वचा नज़र आना
त्वचा का रंग सामान्य से अधिक गहरा होना
त्वचा खड़ी-खड़ी नज़र आना
कुछ लोग अतिरिक्त लक्षणों का अनुभव करते हैं, जैसे बुखार, पेट दर्द, भूख न लगना और ठंड लगना। एलिफेंटियासिस प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। इस स्थिति वाले लोगों को द्वितीयक संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।
फाइलेरिया के जोखिम कारक क्या है? What are the risk factors for Filariasis (Filaria)?
एलीफैंटियासिस यानि फाइलेरिया किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह महिलाओं और पुरुषों दोनों में दिखाई देता है। यह दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय भागों में अधिक आम है, जैसे:
अफ्रीका
भारत
दक्षिण – पूर्व एशिया
दक्षिण अमेरिका
फाइलेरिया के सामान्य जोखिम कारकों में निम्नलिखित शामिल हैं :
मच्छरों के लिए उच्च जोखिम होना
अस्वच्छ परिस्थितियों में रहना
उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लंबे समय तक रहना
फाइलेरिया का निदान कैसे किया जाता है? How is Filariasis diagnosed?
फाइलेरिया का निदान करने के लिए निम्नलिखित जांच करवाई जा सकती है :-
माइक्रोफिलेरिया जाचने के लिए लिए रक्त जांच – रोगी के रक्त में माइक्रोफिलेरिया है या नहीं इसे देखने के लिए रक्त की सूक्ष्म जांच की जाती है। इस जांच के लिए रक्त का नमूना केवल रात के समय लिया जाता है क्योंकि लिंफ़ के (लिम्फेटिक) फिलेरिया का कारण होता है वो रक्त में रात को प्रसार करता है
इम्यूनोडायग्नोस्टिक टेस्ट (Immunodiagnostic tests) – इस जांच में रक्त में यह देखा जाता है कि रक्त में प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) है या नहीं।
रक्त में फाइलेरिया परिसंचरण करने वाला प्रतिजन (Circulating Filarial Antigen) है या नहीं यह जानने के लिए टेस्ट किए जाते हैं।
फाइलेरिया का उपचार कैसे किया जाता है? How is filariasis treated?
हम इस संबंध में पहले ही जानकारी दे चुके हैं कि इस रोग को कभी भी जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता। हाँ, इससे बचाव संबंध है, आप ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहाँ यह रोग सामान्य है तो आप डॉक्टर से इस बारे में बात करें और संभवित उपायों पर काम करें। भारत सरकार ऐसे क्षेत्रों में विशेष रूप से कई योजनाएं चला रही है जिससे फाइलेरिया को आगे बढ़ाने से रोका जा सके, जिसमें काफी सफलता भी नज़र आ रही है।
फाइलेरिया या एलिफेंटाइसिस के उपचार निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है :-
एंटीपैरासिटिक दवाएं, जैसे – डायथाइलकार्बामाज़िन (डीईसी) Diethylcarbamazine (DEC), मेक्टिज़न Mectizan, और एल्बेंडाज़ोल (अल्बेन्ज़ा) Albendazole (Albenza)
प्रभावित क्षेत्रों को साफ करने के लिए अच्छी स्वच्छता का उपयोग करें।
प्रभावित क्षेत्रों को ऊपर उठा कर रखना चाहिए।
प्रभावित क्षेत्रों में घावों की देखभाल करते रहें।
डॉक्टर के निर्देशों के आधार पर व्यायाम करें, जितना हो सके सक्रिय रहें।
अगर फाइलेरिया के मामला काफी गंभीर हो जाता है तो ऐसे में सर्जरी भी की जा सकती है। जिसमें प्रभावित क्षेत्रों के लिए पुनर्निर्माण सर्जरी या प्रभावित लसीका ऊतक को हटाने के लिए सर्जरी की जा सकती है।
फाइलेरिया होने पर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक उपचार भी दिया जाना जरूरी है, ताकि रोगी खुद को कलां के रूप में न देखें। इसके लिए परिवार और रोगी दोनों की काउंसलिंग की जा सकती है।
ध्यान दें, “पैर को रगड़ कर साफ करने से परहेज करना चाहिए। पैरों को बराबर रख कर आरामदेह मुद्रा में बैठना चाहिए। पट्टे वाला ढीला चप्पल पहनने के साथ सूजन वाली जगह को हमेशा चोट से बचाना चाहिए।“
फाइलेरिया से बचाव कैसे करें? How to prevent filariasis?
अगर आप फाइलेरिया एक ऐसा रोग है जिसका कोई उपचार नहीं है। इस लिए सबसे उत्तम है कि इससे बचाव किया जाए, जिसके लिए आप निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं :-
शाम के वक्त बाहर या घर में पूरे कपड़े पहनें।
सोने से पहले मच्छरदानी लगाएं।
घर में मच्छर भगाने वाली लिक्विड दवाओं का उपयोग करें।
बीच-बीच में बॉडी चेकअप के लिए भी डॉक्टर के पास जरूर जाएं।
अगर आपको स्तनों में बदलाव या दर्द महसूस हो रहा है तो इस बारे में डॉक्टर से बात करें।
अगर आप ऐसी इलाके में रहते हैं जहाँ फाइलेरिया होने की आशंका ज्यादा है तो ऐसे में मच्छरों और अन्य कीटों से जितना हो सके उतना बचाव करें।
मच्छरों से बचाव करने के लिए हमेशा पुरे कपड़े पहने और मच्छरों से बचाव करने वाली दवाओं या क्रीम का इस्तेमाल करें।
फाइलेरिया होने पर क्या खाना चाहिए? What should I eat when I have filariasis?
फाइलेरिया होने पर पूछे जाना वाला यह सबसे बड़ा सवाल है। अगर आप इस गंभरी रोग से जूझ रहे हैं तो सबसे बेहतर होगा कि आप इस बारे में अपने डॉक्टर से बात करें। डॉक्टर आपकी तमाम जांच के आधार पर इस बारे में सटीक और पुरी जानकारी दे सकते हैं। क्योंकि आहार से जुड़ी कोई भी जानकारी देने के लिए रोगी की सभी जांच रिपोर्ट्स को देखा जाना सबसे जरूरी होता है।
वैसे सामान्य तौर पर फाइलेरिया रोगी को उन सभी चीजों से दूर रहने की सलाह दी जाती है जिसकी वजह से शरीर में सूजन बढ़े। अगर फाइलेरिया के कारण रोगी के शरीर में जख्म होने लग गये हैं तो ऐसी स्थिति में रोगी को उन सभी चीजों से भी दूर रहने की सलाह दी जाती है जिसकी वजह से उनके शरीर में हुए जख्मों में जलन होना शुरू हो जाए या पस पड़ जाए। उदाहरण के लिए दूध, अचार और तेज मसालेदार खाना।
सामान्य रूप से फाइलेरिया होने पर रोगी को मौसमी और लोकल आहार लेने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह आहार उनके शरीर के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी होता है। फाइलेरिया के इलाज के लिए अपने रोज के खाने में कुछ आहार जैसे लहसुन, अनानास, मीठे आलू, शकरकंदी, गाजर और खुबानी आदि शामिल करें। इनमें विटामिन ए होता है और बैक्टरीरिया को मारने के लिए विशेष गुण भी होते हैं।
आयुर्वेद में फाइलेरिया के लिए क्या उपाय है? What is the remedy for filariasis in Ayurveda?
आयुर्वेद में भी फाइलेरिया के लिए कोई सटीक उपचार मौजूद नहीं है। लेकिन हाँ, इसके लिए कुछ खास उपाय मौजदू है जिनकी मदद से इस रोग से थोड़ा आराम मिल सकता है। निम्नलिखित कुछ आयुर्वेदिक उपायों की मदद से फाइलेरिया से बचाव किया जा सकता हैं :-
लौंग Cloves – अगर आप फाइलेरिया से जूझ रहे हैं या ऐसे इलाके में रहते हैं जहा फाइलेरिया होने का खतरा रहता है तो आप अपने खाने में लौंग का इस्तेमाल करें। लौंग में मौजूद एंजाइम परजीवी के पनपते ही उसे खत्म कर देते हैं और बहुत ही प्रभावी तरीके से परजीवी को रक्त से नष्ट कर देते हैं।
काले अखरोट का तेल black walnut oil – अखरोट के अंदर खून साफ़ करने और खून में मौजूद परजीवियों को खत्म करने की ताक़त होती है। ऐसे में आप फाइलेरिया से अपना बचाव करने के लिए काले अखरोट के तेल को एक कप गर्म पानी में तीन से चार बूंदे डालकर ले सकते हैं। अखरोट के अंदर मौजूद गुणों से खून में मौजूद कीड़ों की संख्या कम होने लगती है और धीरे धीरे एकदम खत्म हो जाती है। जल्द परिणाम के लिए कम से कम छह हफ्ते प्रतिदिन इस उपाय को करें। इसे दिन भर में कितनी बार इस्तेमाल करना है आप इस बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
आंवला Gooseberry – फाइलेरिया होने पर आंवला भी लिया जा सकता है, इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी होता है। इसके अलावा इसके अंदर एन्थेलमिंथिंक (Anthelmintic) भी होता है जो कि घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।
अश्वगंधा Ashwagandha – आयुर्वेद में अश्वगंधा सबसे ताक़तवर औषधियों में शामिल की जाती है। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में काफी मददगार होती है। फाइलेरिया होने पर कमजोर हो चुके इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए अश्वगंधा का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बेल पत्र के पत्तों का लेप bael leaf paste – धार्मिक रूप से बेल पत्र का पेड़ भारत में काफी महत्व रखता है। वहीं यह औषधि के रूप में भी काफी खास हैं। बेल पत्र के पत्तों से बने लेप की मदद से शरीर में आई किसी भी सूजन से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए आप बेल पत्र के पत्तों को साफ़ कर के उन्हें हल्का कूट लें फिर उन्हें हल्का गर्म कर लें फिर तैयार लेप को सूजन वाली जगह पर लगा लें।
अदरक Ginger – फाइलेरिया से निजात के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ का रोज गरम पानी से सेवन करें। इसके सेवन से शरीर में मौजूद परजीवी नष्ट होते हैं और मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।
ध्यान दें, “बताए गये सभी उपायों का प्रयोग अपने डॉक्टर की सलाह के बिना न करें, क्योंकि हर उपाय और हर औषधि सभी के लिए सही नहीं होती।“
Mr. Ravi Nirwal is a Medical Content Writer at IJCP Group with over 6 years of experience. He specializes in creating engaging content for the healthcare industry, with a focus on Ayurveda and clinical studies. Ravi has worked with prestigious organizations such as Karma Ayurveda and the IJCP, where he has honed his skills in translating complex medical concepts into accessible content. His commitment to accuracy and his ability to craft compelling narratives make him a sought-after writer in the field.
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