कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में अपना प्रकोप दिखा दिया है, एक ओर जहां हर घंटे कईं सौ लोग मर रहे हैं वहीं दुनियाभर की अर्थव्यवस्था ज़मीन पर आ गिरी है । विश्वभर के ज्यादातर देश लॉकडाउन की स्थिति पर हैं और जो लॉकडाउन नहीं कर रहा वहां कोरोना वायरस से हर मिनट संक्रमण बढ़ता जा रहा है ।
इतना सब होने के बाद भी मजबूरी यह है कि अभी तक इस वायरस के लिए कोई सटीक इलाज या टीका इजाद नहीं हुआ है। लेकिन डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने एक परामर्श या सलाह इस दौरान दी है और वह है ‘प्लाज़मा थेरेपी’ ।
लगभग 100 साल से भी पुरानी तकनीक है प्लाज़मा थेरेपी । शोधकर्ताओं का कहना है कि इस थेरेपी से कोरोना वायरस का तोड़ निकाल सकते हैं । राजधानी दिल्ली सहित कुछ राज्यों को हाल ही में इसके ट्रायल की मंजूरी मिल गई है। प्लाज़्मा थेरेपी क्या है, यह कैसे काम करती है और ये थेरेपी प्रमाणित है या नहीं, इन्हीं विषयों के बारे में बता रहे हैं इंडियन हार्ट केयर फांउडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के.अग्रवाल ।
मानव के शरीर में जो खून बनता है, उसके पीछे चार कारक होते हैं । पहला लाल रक्त कोशिकाएं(RBC), दूसरा श्वेत रक्त कोशिकाएं(WBC), तीसरे होते हैं प्लेट्लेट्स और चौथा प्लाज्मा।
प्लाज्मा की भूमिका यह होती है कि यह खून का तरल भागहोता है। इसी के कारण आवश्यकता होने पर एंटीबॉडी बनती हैं। कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद मानव शरीर इस वायरस से सामना करना शुरू करता है। ऐसे समय पर वायरस और इसकी तीव्रता से यहीएंटीबॉडी लड़ती है जो प्लाज्मा की सहायता से बनी होती है ।
अब ऐसे में यदि शरीर भरपूर एंटीबॉडी बना लेता है तो कोरोना का इसपर प्रभाव नहीं होगा । 14 दिन बाद जब रोगी ठीक हो जाता है, तब भी एंटीबॉडी शरीर में प्लाज्मा के साथमौजूद रहती है और जिसे किसी दूसरे की सहायता के लिए डोनेट भी किया जा सकता है ।
यदि कोई व्यक्ति केवल एक बार कोरोना से संक्रमित हो जाता है और जब वह जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी विकसित होते हैं । यही एंटीबॉडी उसे स्वस्थ होने में मदद करते हैंऔर यही व्यक्ति अपना खून दे सकता हैक्योंकि उसके खून के भीतर से प्लाज्मा को निकाल लिया जाता है और प्लाज्मा में स्थित एंटीबॉडी जब किसी दूसरे के खून में डाला जाता है तो अस्वस्थ रोगी के खून में भी यह एंटीबॉडी मिल जाते हैं और यही जो उसे ठीक करने में सहायता करते हैं । एक व्यक्ति के खून से निकाले गए प्लाज़्मा से कम से कम 10 लोगों की मदद की जा सकती है। कोरोना के नेगेटिव आने के कम से कम दो हफ्ते बाद कोई व्यक्ति प्लाज्मा डोनेट कर सकता है, उससे पहले नहीं ।
यह प्लाज़्मा थेरेपी कितनी कारगर या सफल हो पाई है, इसपर अभी फिलहाल कुछ भी कहा नहीं जा सकता । हां, लेकिन चीन में कुछ रोगियों पर इसका प्रयोग किया गया और नतीजे पॉजिटीव आए हैं, कईं रोगियों को इससे लाभ पहुंचा है । इसके अलावा कुछ भारतीय-अमरीकी रोगियों पर परीक्षण करने के बाद भी खबरे अच्छी मिली हैं । लेकिन अभी फिलहाल भारत में आईसीएमआरऔर डीजीसीआई ट्रायल के बाद ही इसपर कुछ कह सकती हैं ।
एक व्यक्ति से 200ml. से लेकर 500ml. तक प्लाज़मा लिया जा सकता है और इसे ऐसे 3 लोगों में डोनेट कर सकते हैं जिनपर दवाईयां असर नहीं कर रही हैं ।
बिल्कुल, प्लाज़्मा थेरेपी ICMR, स्वास्थ्य मंत्रालय और अमेरीका की स्वास्थ्य एजेंसी FDI द्वारा प्रमाणित है ।
प्लाज़्मा थेरेपी बड़े स्तर पर कोविड 19 का इलाज बन पाएगी या नहीं, यह तो रिपोर्ट ही बता पाएगी । ऐसा नहीं है कि प्लाज़्मा थेरेपी पहली बार इस्तेमाल की जा रही है । इससे पहले दूसरे वायरस जैसे- सार्सऔर मर्स से निपटने के लिए भी प्लाज्मा तकनीक का सहारा लेकर इलाज किया गया था और यह वायरस भी कोविड 19 की श्रेणी में ही आते हैं।
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