आज के समय में जिस तरह की जीवन शेली को हम अपना रहे हैं यह महिला हो या पुरुष दोनों के लिए ही परेशानी की वजह बनता जा रहा है । आज कल का खानपान और साथ ही कई और भी ऐसे कारण है जैसे की तनाव और रहन सहन का तरीका जिसके कारण कई महिलाएं और पुरुष माता पिता बनने का सुख नहीं भोग पाते और उनको लाचार होना पड़ता है । आज हमारे देश में कई तरह की तकनीक आ चुकी है जो ऐसी कई परेशानियों को बहुत ही आसानी से दूर कर सकती है पर आज भी कई लोगों को इस बारे में कुछ भी नही पता ।
कई कारण ऐसे भी होते हैं जिनके कारणों से महिलाओं को कंसिव करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है । वह कंसिव कर भी लें पर मिस केरेज हो जाना या प्रेग्नेंसी सफलता पूर्वक नहीं हो पाना जैसी परेशानी का भी सामना करना पड़ता है । ऐसे में आज के जमाने में नई नई तकनीकें हैं जिनकी खोज वैज्ञानिकों की है ताकि ऐसे कपल्स जो प्रेग्नेंसी में परेशानी का सामना कर रहे हैं उनकी समस्या को समाधान मिल जाये । ऐसे ही एक समाधान का नाम है आईवीएफ़ तकनीक ।
आईवीएफ़ (IVFइन हिन्दी ) इसको हम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के नाम से भी जानते हैं। जिसमें पुरूष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु को लेब में मिलाकर उसे ऐसी महिला के गर्भाशय में डाला जाता है, जो मां बनना चाहती हैं।पहले इस प्रक्रिया को “टेस्ट-ट्यूब बेबी” के नाम से जाना जाता था। इस प्रक्रिया का प्रयोग पहली बार 1978 में इंग्लैंड में किया गया था। आईवीएफ़ ट्रीटमेंट के दौरान लेब में कुछ नियंत्रित परिस्थितियों में महिला के एग्स और पुरुष के स्पर्म को मिलाया जाता है। जब संयोजन से भ्रूण बन जाता है तब उसे वापस महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। हालाँकि आईवीएफ़ एक जटिल और महंगी प्रक्रिया है, किन्तु यह प्रक्रिया उन दम्पतियों के लिए बहुत सहायक होती है जो बहुत समय से गर्भधारण की तैयारी कर रहे हैं या किसी कारणवश अन्य फर्टिलिटी ट्रीटमेंट असफल हो गए हैं।
आईवीएफ़ की सलाह बहुत आसान स्वास्थ्य संश्याओं पर नहीं दी जाती है । आईवीएफ़ की सलाह डॉक्टर्स तब देते हैं जब कपल्स में 5 हेल्थ प्रोब्ल्म्स होती है । एक तरह से यह आईवी की शर्तें है जिंका सामना करने के कारण ही आईवीएफ़ की सलाह डॉक्टर्स देते हैं ।
• फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज का होना- आईवीएफ़ को मुख्य स्थिति में किया जाता है, जब किसी महिला की फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज हो जाता है।
• पुरूष बांझपन (Male Infertility) का होना- अक्सर, Married couple के मां-बाप न बनने का कारण पुरुष बांझपन भी होता है।
इस स्थिति में भी आईवीएफ़ बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
• पी.सी.ओ.एस (PCOS) से पीड़ित होना- अगर किसी महिला को पीसीओएस की परेशानी है और अगर वह मां बनना चाहती है, तो वह इसके लिए आईवीएफ़ को अपना सकती है।
• किसी जेनेटिक बीमारी का होना- किसी व्यक्ति के संतान सुख से वंचित रहने का कारण जेनेटिक बीमारी भी होती है।
ऐसे लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे IVF से संतान सुख पा सकते हैं।
• इंफर्टलिटी के सही कारण का पता न होना- कई मामले ऐसे भी सामने आते हैं, जिसमें इंफर्टलिटी के सही कारण का पता न चल पाता है।इसी कारण, आईवीएफ़ को इंफर्टलिटी के कारण का पता लगाने के लिए भी किया जाता है।
इस प्रक्रिया में महिला और पुरुष की जाँच की जाती हैं, उसके बाद रिजल्ट के अनुसार प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता हैं।
• पुरुष के स्पर्म को लैब में साफ़ किया जाता है। फिर अच्छे और निष्क्रिय या बेकार शुक्राणुओं को अलग किया जाता हैं।
• महिला के शरीर में से इंजेक्शन के ज़रिए अंडे को बाहर निकालकर उसे फ्रीज किया जाता है। आज कल तो ज्यादा उम्र हो जाने के बाद शादी करने और मोनोपोज शुरू हो जाने के कारण बच्चे पैदा होने में परेशानी से निपटने के लिए महिलाएं पहले से ही अपने एग्स को फ्रिज करवा रही है । ताकि आगर चल कर उनको किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े ।
• फिर लैब में पेट्री-डिश में अंडे के ऊपर सक्रिय शुक्राणु को रखा जाता है और प्राकृतिक तरह से प्रजनन के लिए छोड़ दिया जाता है।
• प्रजनन के तीसरे दिन तक भ्रूण तैयार हो जाता है। कभी कभी इसमे 3 से 7 दिन भी लग जाते हैं ।
• कैथिटर (एक विशेष लचकदार नली ), उसकी मदद से महिला के गर्भाशय में उस भ्रूण को ट्रांसफर कर दिया जाता है।
• कई बार भ्रूण को 5 दिन तक की निगरानी के बाद महिला के गर्भाशय में रखा जाता है।5 दिन वाले भ्रूण में प्रेगन्नसी की सफलता दर अधिक बढ़ जाती है।
आईवीएफ़ गर्भावस्था सामान्य प्रेग्नन्सी की तरह ही होती है सिर्फ इसमें भ्रूण को लैब में तैयार किया जाता है, जिससे कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता। कई लोगों का मनाना हैं कि आईवीएफ़ तकनीक के द्वारा प्रेग्नेंसी कंसिव करने से बच्चे के अंदर कोई कमी रह सकती है। परंतु यह सच नहीं हैं क्योंकि प्रजनन से लेकर शिशु जन्म तक की पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से ही होती है। शिशु का विकास माँ की कोख में होता है, माँ के आहार और प्रतिक्रियाओं पर बच्चे का विकास निर्भर करता है।
कई फर्टिलिटी परेशानियों के लिए अलग-अलग प्रकार के इलाज मौजूद है। कई बार परेशानी शुक्राणुओं की कमी, शुक्राणुओं की गति, शुक्राणुओं के आकार, स्पर्म में शुक्राणुओं की उपस्थिति ना होना, खराब गुणवत्ता वाले शुक्राणु, खराब गुणवत्ता वाले अंडे या ओवुलेशन में परेशानी भी वजह हो सकती है ।
इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन (IUI) – यह एक तकनीक है जहाँ पुरुष शुक्राणु को स्त्री के गर्भाशय में ओवुलेशन के दौरान स्थापित जाता है। इस तकनीक का प्रयोग पुरुष के शुक्राणुओं में किसी भी प्रकार की कमी होने पर किया जाता है। इस प्रक्रिया में स्पर्म को लैब में साफ़ करने के बाद एक स्वस्थ शुक्राणु चुना जाता है जिसे महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। पुरुष का शुक्राणु अच्छा हो ,सक्रिय हो तभी यह प्रक्रिया सफल होती है ।
इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) - पुरुष के स्पर्म में से एक स्वस्थ शुक्राणु को लिया जाता है और फिर उसे महिला के अंडे में इंजेक्ट कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया ऐसे मामलों में इस्तेमाल की जाती है जहाँ पुरुष शुक्राणु की गतिशीलता कम हो। स्वस्थ स्त्री के अंडे के लिए ICSI की सफलता 70-85% है। शुक्राणु को अंडे में इंजेक्ट करने के बाद वह प्राकृतिक रूप से फर्टिलाइज़ हो जाता है। इसके बाद भ्रूण को महिला के गर्भशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
डोनर आईवीएफ़ प्रक्रिया - अगर कपल /पति-पत्नी के शुक्राणु या अंडों की गुणवत्ता ख़राब हो तो ऐसे में डोनर एग या स्पर्म और डोनर एम्ब्र्यो का प्रयोग किया जाता है। डोनर आईवीएफ़ की उन मामलो में सलाह दी जाती है जिनमें साथी किसी आनुवांशिक रोग से पीड़ित हो महिलाओं में ओवेरियन रिज़र्व फेलियर हो तब डोनर एग की ज़रूरत होती है।
सरोगेसी (गोद ली हुई कोख या किराये की कोख ) – जब कोई महिला गर्भाश्य में दिक्कत या किसी और कठिनाई का सामना कर रही हो जिसके कारण शिशु पैदा नहीं कर सकती तो उनके लिए सरोगेसी एक अच्छा विकल्प है। सरोगेसी एक कोंट्रेक्ट होता है जिसमें सरोगेट माँ ( जो महिला अपनी कोख से बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती है ) शिशु के जन्म तक उसे अपनी कोख में रखती है और जन्म के बाद माता-पिता को सौंप देती है। इसमें भ्रूण को लैब के अंदर फर्टिलाइज़्ड किया जाता है और सरोगेट मदर के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। शिशु का सरोगेट माता के साथ कोई आनुवंशिक सम्बन्ध नहीं होता है, यह पूर्ण रूप से दंपति से ही संबंध रखता है जिंका शुक्राणु और अंडा फर्टिलाइज करने के बाद सेरोगेट मदर की कोख में रखा गया होता है । ऐसी कई वजह है जिनमें दंपत्ति सरोगेसी को चुनते हैं जिसमें कैंसर का उपचार भी एक है य फिर जिन महिलाओं में गर्भाशय ना हो या प्रजनन प्रणाली में कोई समस्या हो।
आईवीएफ़ ट्रीटमेंट में जब भ्रूण तैयार होने के बाद महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है तो कुछ दिन तक खास ध्यान और ओबजरवेशन में रखा जाता है । करीब 20 दिन तक । इस दौरान यह देखा जाता है क महिला का शरीर इसके प्रति क्या प्रक्रिया दे रहा है ? यदि महिला को भ्रूण प्रत्यारोपन के बाद किसी भी तरह का गर्भाशय में दर्द , ऐंठन , खून आना या कोई और परेशानी देखि जाती है तो इस प्रक्रिया को रोका जाता है क्योंकि वह असफल प्रक्रिया होती है । इस प्रक्रिया में थोड़ा संयम बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि इसमे वक्त लगता है और जब तक सफल ना हो जे य प्रक्रिया जारी भी रखनी पड़ सकती है । बच्चेदानी में भ्रूण इम्प्लांट करने के बाद 14 दिनों में ब्लड या प्रेग्नेंसी टेस्ट के जरिए इसकी सफलता और असफलता का पता चलता है। यह एक तरीके से तकनीकी रूप से गर्भधारण करने का जरिया बनता है ।
क्या कीमत होती है आईवीएफ़ ट्रीटमेंट की ?
यदि आप आईवीएफ़ प्लान कर रहे हैं तो इसके लिए आपको आर्थिक तौर पर भी मजबूत और तैयार रहने की जरूरत है । इस पूरी प्रक्रिया यानि आईवीएफ़ के प्रोसेस का खर्चा 1,50,000 से 3,000,00 तक होता है ।
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