दुनियाभर मे एक साल (2020) मे फेफड़ों के कैंसर का 2.21 मिलियन नया केस आया और 1.80 मिलियन मौते हुई
फेफड़ों का कैंसर (लंग कैंसर) एक प्रकार का कैंसर है जो फेफड़ों में शुरू होता है। ये कैंसर तब शुरू होता है जब शरीर में कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर होने लगती हैं यानी ज़रूरत से ज्यादा बढ़ने लगती है। फेफड़ों का कैंसर विश्व स्तर पर मौत का एक प्रमुख कारण है। यह भारत में भी प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं मे से एक है। फेफड़ों के कैंसर आमतौर पर ब्रोंकी और फेफड़ों के कुछ हिस्सों जैसे ब्रोंकीओल्स या एल्वियोली की कोशिकाओं में शुरू होता हैं। शरीर के दूसरे अंगों से भी कैंसर फेफड़ों में फैल सकता है। जब कैंसर कोशिकाएं शरीर के एक अंग से दूसरे अंग में फैलती हैं, तो उन्हें मेटास्टेसिस कहा जाता है।
आमतौर पर, फेफड़ों का कैंसर का कोई लक्षण शुरुआती दौर मे नहीं दिखाता है। सबसे जरूरी लक्षण फेफड़ों के कैंसर के ऐडवांस स्टेज में पाए जाते हैं। फेफड़ों के कैंसर अलग-अलग लोगों में अलग-अलग लक्षण होते हैं। कुछ लोगों में फेफड़ों से संबंधित लक्षण होते हैं। कुछ लोग जिनके फेफड़ों का कैंसर शरीर के अन्य अंग में फैल गया है (मेटास्टेसाइज्ड) शरीर के उस दूसरे हिस्से का खास लक्षण दिखता हैं। कुछ लोगों में तबीयत ठीक न होने के सामान्य लक्षण होते हैं
खांसी जो गंभीर हो जाती है या दूर नहीं होती है।
छाती (चेस्ट) मे दर्द होना।
सांस लेने मे दिक्कत का सामना करना।
खांसी मे खून आना।
हर समय थका हुआ मेहसूस होना।
बिना किसी कारण वजन कम होना।
निमोनिया के बार-बार होने वाले दौरे।
फेफड़ों के बीच में छाती के अंदर सूजन या बढ़े हुए लिम्फ नोड्स (ग्रंथियां)।
वैसे ये लक्षण दूसरे बिमारियो मे भी होता है। इसमे से कोई भी लक्षण अगर दिखे या मेहसूस हो तो डॉक्टर को ज़रूर दिखाए और उनकी राय माने।
कैंसर कोशिकाएं - फेफड़ों से निकलने वाली कैंसर कोशिकाओं का निर्माण लंग कैंसर का कारण बनता है।
स्मोकिंग - तंबाकू का सेवन अब तक फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक, फेफड़ों के कैंसर से होने वाली लगभग 80% मौतें धूम्रपान के कारण होती हैं, और कई अन्य इसके धुएं के संपर्क में आने के कारण होती हैं।
अन्य कारण- धूम्रपान न करने वाले लोगों में भी फेफड़ों का कैंसर रेडॉन, सेकेंड हैंड धुएं, वायु प्रदूषण या अन्य कारकों के संपर्क में आने के कारण हो सकता है। एस्बेस्टस, डीजल निकास या कुछ अन्य रसायनों के कार्यस्थल के संपर्क में आने से कुछ लोगों में फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है जो धूम्रपान नहीं करते हैं।
डीएनए मे बदलाव - फेफड़ों के कैंसर के कुछ जोखिम कारण फेफड़ों की कोशिकाओं के डीएनए में कुछ बदलाव भी हो सकते हैं। इन बदलाव से असामान्य कोशिका वृद्धि हो सकती है और कभी-कभी कैंसर भी हो सकता है। डीएनए हमारी कोशिकाओं में वह केमिकल है जो हमारे जीन को बनाता है, जो हमारी कोशिकाओं के कार्य करने के तरीके को नियंत्रित करता है। डीएनए, जो हमारे माता-पिता दोनों से आता है, हमारे दिखने के तरीके से कहीं अधिक प्रभावित करता है। यह कुछ प्रकार के कैंसर सहित कुछ बीमारियों के विकास को भी प्रभावित कर सकता है।
वंशानुगत (इन्हेरिटेड) जीन बदलाव - कुछ परिवारों मे फेफड़े के कैंसर के इतिहास में जीन एक भूमिका निभाता हैं। उदाहरण के लिए, जिन लोगो मे किसी खास क्रोमोसोम (क्रोमोसोम 6) में कुछ डीएनए बदलाव होते हैं, उनमें फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है, भले ही वे धूम्रपान न करें या केवल थोड़ा धूम्रपान करें।
ध्रूमपान ना करे - फेफड़ों के कैंसर से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप धूम्रपान न करें और दूसरे लोगों के धुएं में सांस लेने से बचें। आजकल यंग लोग या बच्चे भी शौक से दिखाने के लिये धूम्रपान करते है, जो उनके स्वस्थ्य के लिये खतरनाक साबित हो सकता है। यदि आप समय रहते धूम्रपान करना बंद कर देते हैं, तो आपके क्षतिग्रस्त फेफड़े के टीस्सू या सेल धीरे-धीरे अपने आप ठीक होने लगते हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी उम्र क्या है या आपने कितनी देर तक धूम्रपान किया है, छोड़ने से आपके फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता है और आपको लंबे समय तक जीने में मदद मिल सकती है।अगर आप धूम्रपान या तम्बाकू छोड़ नही पा रहे, तो किसी अपने या डॉक्टर की भी मदद ले सकते है। आज ऐसे कई प्रोग्राम या सेंटर खुले है जो आपको इन्हे छोड़ने मे मदद कर सकते है।
रेडॉन एक्सपोजर से बचें - रेडॉन फेफड़ों के कैंसर का एक महत्वपूर्ण कारण है। यदि जरूरी हो, तो आप अपने घर में टेस्ट और इलाज करवाकर रेडॉन के प्रति अपने जोखिम को कम कर सकते हैं।
कैंसर एजेंट से बचे - कार्यस्थल और अन्य जगहों पर ज्ञात कैंसर पैदा करने वाले एजेंटों के संपर्क में आने से बचना भी मददगार हो सकता है। जब लोग काम करते हैं जहां ये खतरा हो सकता हैं, तो उन्हें पुरे एहतियात के साथ काम करना चाहिए, बिना किसी तरह के केमिकल या कार्सिनोजेनीक पदार्थ के सम्पर्क मे आए।
स्वस्थ्य आहार खाए - बहुत सारे फलों और सब्जियों के साथ एक स्वस्थ आहार भी आपके फेफड़ों के कैंसर के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है। फलों और सब्जियों में उच्च आहार धूम्रपान करने वाले लोगों की रक्षा करने में मदद कर सकता है।
लेकिन फेफड़ों के कैंसर के जोखिम पर फलों और सब्जियों का कोई भी सकारात्मक प्रभाव धूम्रपान के बढ़ते जोखिम से काफी कम होगा। अगर शराब पीते है तो, उसकी मात्रा सिमित रखनी चाहिये या बन्द कर देनी चाहिये।
नियमित व्यायाम करे - शरीर को हर तरह से स्वस्थ्य रखने के लिये व्यायाम जरूरी है। एक्सरसाइज या व्यायाम किसी भी तरह की बिमारी को रोकने मे मददगार होता है। इसलिये थोड़े समय के लिये ही सही पर नियमित रूप से व्यायाम मे समय दे।
फेफड़ो के कैंसर का मुख्यतः दो प्रकार होता है :-
स्मॉल सेल लंग कैंसर - स्मॉल सेल लंग कैंसर लगभग विशेष रूप से भारी धूम्रपान करने वालों में होता है और नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर के कैंसर से कम समान्य है।
नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर - नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर कई प्रकार के फेफड़ों के कैंसर के लिए एक छत्र शब्द है। नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा, एडेनोकार्सिनोमा और बड़े सेल कार्सिनोमा गंभीर स्थिति शामिल हैं।
फेफड़ो के कैंसर का लक्षण समान्यत शुरुआत मे नही दिखते, इसलिये इसका पता शुरुआत मे चलना मुश्किल हो सकता है। लेकिन एक तरीका है जिसके जरिये कैंसर का पता शुरुआती दिनो मे चल सकता है - स्क्रीनिंग (screening)। स्क्रीनिंग उन लोगों में किसी बीमारी का पता लगाने के लिए परीक्षण / टेस्ट का उपयोग करता है जिनमे लक्षण नहीं दिखते हैं।
अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक, हाल के वर्षों में, फेफड़ों के कैंसर होने के उच्च जोखिम वाले लोगों में लो डोज सीएटी स्कैन या सीटी स्कैन (एलडीसीटी) के रूप में जाना जाने वाला एक टेस्ट का स्टडी किया गया है।
एलडीसीटी स्कैन फेफड़ों में असामान्य जगहों को खोजने में मदद कर सकता है जहा कैंसर हो सकता है।
शोध से पता चला है कि फेफड़ों के कैंसर के ज्यादा जोखिम वाले लोगों की जांच के लिए एलडीसीटी स्कैन का उपयोग करके छाती के एक्स-रे की तुलना में अधिक लोगों की जान बचाई गई।
ज्यादा जोखिम वाले लोगों के लिए, लक्षण शुरू होने से पहले वार्षिक एलडीसीटी स्कैन कराने से फेफड़ों के कैंसर से मरने के खतरा को कम करने में मदद मिलती है।
स्क्रीनिंग से यदि फेफड़ों का कैंसर पहले चरण में पाया जाता है, जब यह छोटा होता है तब इसके फैलने से पहले, इसका सफलतापूर्वक इलाज होने की संभावना ज्यादा होती है।आम तौर पर फेफड़ों के कैंसर के लक्षण तब तक नहीं दिखते, जब तक कि रोग ऐडवांस स्टेज में न हो। यहां तक कि जब फेफड़ों के कैंसर के लक्षण होते हैं, तो कई लोग उन्हें दूसरे समस्याओं समझ सकते हैं, जैसे कि संक्रमण या धूम्रपान का प्रभाव। इससे जांच में देरी हो सकती है, तब स्क्रीनिंग साफ तौर पर रोग को बात देता है।
स्क्रीनिंग का मुख्य फायदा फेफड़ों के कैंसर से मरने की कम संभावना है, जो वर्तमान में धूम्रपान करने वाले या पहले धूम्रपान करने वाले लोगों में कई मौतों का कारण है।स्क्रीनिंग केवल उन सुविधाओं में की जानी चाहिए जिनके पास सही प्रकार का सीटी स्कैनर है और जिन्हें फेफड़ों के कैंसर की जांच के लिए एलडीसीटी स्कैन का अनुभव है।
कुछ लंग कैंसर स्क्रीनिंग से पता चल सकते है, पर फेफड़ों के कैंसर का असल जांच लैब में फेफड़ों की कोशिकाओं के नमूने को देखकर किया जाता है।
चिकित्सा इतिहास और शारीरिक परीक्षा
आपका डॉक्टर आपके लक्षणों और संभावित जोखिम कारकों के बारे में जानने के लिए आपके चिकित्सा इतिहास के बारे में पूछेगा। फेफड़ों के कैंसर या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षण देखने के लिए डॉक्टर भी आपकी जांच करेगे।
यदि आपके इतिहास और शारीरिक टेस्ट के परिणाम बताते हैं कि आपको फेफड़ों का कैंसर हो सकता है, तो और भी टेस्ट किए जाएंगे।
छाती (चेस्ट) एक्स - रे
छाती का एक्स-रे अक्सर पहला टेस्ट होता है जो आपका डॉक्टर फेफड़ों में किसी भी असामान्य क्षेत्र को देखने के लिए करता है। यदि कुछ संदिग्ध दिखाई देता है, तो आपका डॉक्टर और भी टेस्ट के लिये बोल सकता है।
कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन
एक सीटी स्कैन आपके शरीर के विस्तृत क्रॉस-सेक्शनल चित्र बनाने के लिए एक्स-रे का उपयोग करता है। सीटी स्कैन में फेफड़ों के ट्यूमर दिखाने की ज्यादा संभावना होती है। यह किसी भी फेफड़े के ट्यूमर के आकार, स्थिति को भी दिखा सकता है और बढ़े हुए लिम्फ नोड्स को खोजने में मदद करता है जिसमें कैंसर फैल सकता है। अगर कैंसर गहरा है तो सीटी नीडल बियोप्सी का इस्तेमाल किया जाता है।
मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) स्कैन
सीटी स्कैन की तरह, एमआरआई स्कैन शरीर में मुलायम टीस्सू की तस्वीरे दिखाते हैं। लेकिन एमआरआई स्कैन में एक्स-रे के बजाय रेडियो तरंगों और मजबूत मैग्नेट का इस्तेमाल किया जाता है। दिमाग या रीढ़ की हड्डी में फेफड़े के कैंसर के फैलाव को देखने के लिए एमआरआई स्कैन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन
पीईटी स्कैन के लिए, शुगर का थोड़ा रेडियोऐक्टिव रूप (एफडीजी के रूप में जाना जाता है) खून में इंजेक्ट किया जाता है और मुख्य रूप से कैंसर कोशिकाओं में एकत्र होता है।पीईटी स्कैन अक्सर सीटी स्कैन के साथ मिलकर काम करता है।
स्पुटम स्य्टोलॉजि
स्पुटम यानी थूक का एक नमूना (आप फेफड़ों से खांसी करते हैं) को लैब में देखा जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसमें कैंसर कोशिकाएं हैं या नहीं। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है कि लगातार 3 दिन सुबह के नमूने लिए जाएं।
यह परीक्षण फेफड़ों के प्रमुख वायुमार्गों में शुरू होने वाले कैंसर को खोजने में मदद करने की अधिक संभावना है, जैसे स्क्वैमस सेल फेफड़ों के कैंसर।
ब्रोंकोस्कोपी
ब्रोंकोस्कोपी डॉक्टर को फेफड़ों के बड़े हवा के नली में कुछ ट्यूमर या ब्लोकेज को खोजने में मदद कर सकता है, जिन्हें अक्सर प्रक्रिया के दौरान बायोप्सी किया जा सकता है।
इनके अलावा और भी टेस्ट है जो लंग कैंसर का पता अलग-अलग स्टेज, और जगह पर लगाने मे सक्षम है, जैसे-
1. थोरैसेन्टेसिस
2. नीडल बायोप्सी
3. फ़ाइन नीडल अस्पिरेस्न (एफएनए) बायोप्सी
4. एंडोब्रोनकियल अल्ट्रासाउंड
5. एंडोस्कोपिक एसोफैगल अल्ट्रासाउंड
जांच के बाद अगर स्मॉल सेल लंग कैंसर या फिर नॉन- स्मॉल सेल लंग कैंसर, दोनो मे से कोई भी पाया जाये तो कैंसर स्टेज के मुताबिक इनका इलाज शुरु किया जाता है।
स्मॉल सेल लंग कैंसर का इलाज -
अगर जाँच मे स्मॉल सेल लंग कैंसर पाया गया तो इनमे ये सारे इलाज शामिल होगें- :
1. कीमोथेरेपी
2. इम्यूनोथेरेपी
3. रेडीएसन थेरपी
4. सर्जरी
5. पल्लियेटीव प्रक्रिया
एससीएलसी के लिए इलाज के विकल्प मुख्य रूप से कैंसर के चरण (स्टेज) पर आधारित होते हैं, लेकिन अन्य कारक, जैसे कि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य और फेफड़े का कार्य भी जरूरी होते हैं। कभी-कभी, एक से ज्यादा तरह का इलाज भी किया जाता है। यदि आपको एससीएलसी है, तो शायद पर्याप्त स्वस्थ होने पर कीमोथेरेपी होगा। यदि आपके पास सीमित चरण की बीमारी है, तो रेडीएसन थेरपी और - शायद ही कभी सर्जरी भी विकल्प हो सकती है। व्यापक चरण की बीमारी वाले लोग अक्सर इम्यूनोथेरेपी के साथ या बिना कीमोथेरेपी होता है।
एक बात का ध्यान रखे की किसी भी इलाज का साइड इफेक्ट डॉक्टर से बेहतर तरीके से पता कर लें।
नॉन- स्मॉल सेल लंग कैंसर का इलाज -
यदि जांच के बाद नॉन- स्मॉल सेल लंग कैंसर पाया जाता है, तो इनमे ये इलाज शामिल है -
1. सर्जरी
2. कीमोथेरेपी
3. इम्यूनोथेरेपी
4. रडियोफ्रीक़ुएंसी
5. रेडीएसन थेरपी
6. टारगेट ड्रग थेरपी
7. पल्लियेटीव प्रक्रिया
नॉन- स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) के इलाज के लिये भी विकल्प मुख्य रूप से कैंसर के चरण (स्टेज) पर आधारित होते हैं, लेकिन अन्य कारक, जैसे कि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य और फेफड़ों का कार्य, साथ ही साथ कैंसर के कुछ लक्षण, भी महत्वपूर्ण हैं। इसमे भी कई मामलों में, एक से ज्यादा तरह के इलाज का उपयोग किया जाता है।
अगर लंग कैंसर आखिरी स्टेज पर पहुच चुका है, तो कई लोग ये इलाज ना करवाना ही चुनते है और उन्हे सिर्फ कैंसर से जुड़े लक्षण का दवा चलाया जाता है। डॉक्टर या एक्सपर्ट के राय के मुताबिक ही इलाज कराये। आप मैडिकल ओन्कोलोजीस्ट से सम्पर्क कर सकते है।
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