माता-पिता बनना एक अहसास है जिसको कभी भी शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता है। इसे बस महसूस किया जा सकता है। घर में नन्हें मेहमान का आना न केवल खुशियाँ लाता है बल्कि साथ में उसे लेकर कई जिम्मेदियाँ भी लाता है और साथ ही माता-पिता के जीवन को कई तरह से बदल देता है।। बच्चे के जन्म के जीवन में बदलाव आना लाजमी है, लेकिन कई यह बदलाव अवसाद यानि डिप्रेशन का कारण बन जाता है। बच्चे के जन्म के कारण होने वाले अवसाद को पोस्टपार्टम डिप्रेशन के नाम से जाना जाता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या महिलाओं में सामान्य बात है जिसके बारे में हम पहले भी अपने एक लेख में जिक्र कर चुके हैं। लोगों को लगता है कि यह समस्या केवल महिलाओं को ही होती है, लेकिन ऐसा नहीं है पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या महिलाओं की भांति पुरुषों में भी दिखाई देती है। हाँ, महिलाओं की तुलना में पुरुष इसकी चपेट में कम आते हैं। आज इस लेख में हम पुरुषों को होने पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में बात करेंगे और पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण, पोस्टपार्टम डिप्रेशन कारण और इसके उपचार के बारे में जानेंगे।
प्रसवोत्तर डिप्रेशन या अवसाद वह डिप्रेशन है जो कि महिलाओं और पुरुषों को संतान प्राप्ति के बाद होता है। इस पोस्टपार्टम डिप्रेशन में शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहारिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है। यह डिप्रेशन न केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों को भी अपनी चपेट में लेता है। लेकिन महिलाओं की तुलना में पुरुषों को पोस्टपार्टम डिप्रेशन कम होता है।
किसी भी व्यक्ति के पिता बनने के बाद अभिभूत और तनाव महसूस करना एक दम सामान्य बात है। इसके साथ ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में बदलाव होना भी बहुत ही सामान्य बात है। लेकिन अगर यह समस्या लंबे समय तक रहे और इसकी वजह से दैनिक जीवन में समस्याएँ आने लग जाए तो यह स्पष्ट है कि पुरुष प्रसवोत्तर डिप्रेशन यानि पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझ रहा है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने पर एक पिता को निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं :-
भूख में काफी ज्यादा बदलाव होना
वजन परिवर्तन होना
सोने से जुड़ी समस्याओं का सामना करना
अस्पष्टीकृत दर्द या पीड़ा बने रहना
ऊर्जा की हानि होना और लगातार आलास महसूस करना
खुद को बेचैन या उत्तेजित महसूस करना
रोजाना या अलग से होने गतिविधियों में रुचि न लेना और खुद को अलग कर कबा
हमेशा उदास या निराश महसूस करना
खुद बेकार या दोषी महसूस करना
अत्यधिक चिंता करना
ध्यान केंद्रित करने या निर्णय लेने में असमर्थ होना
मूड में अचानक से बदलाव होते रहना
आत्महत्या या मृत्यु के विचार आना
बच्चे को नुकसान पहुंचाने के विचार बार-बार मन में आना
बच्चे को खुद के करीब महसूस न कर पाना
चिड़चिड़ापन, अनिर्णय और भावनाओं की एक सीमित सीमा भी प्रसवोत्तर अवसाद से जूझने वाले पुरुषों में काफी ज्यादा दिखाई देते हैं।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने पर पुरुषों में दिखाई देने वाले हर पुरुष में अलग हो सकते हैं। इस समस्या में दिखाई देने वाले न केवल लक्षण ही भिन्न हो सकते हैं बल्कि वह दुसरे पुरुष की तुलना में कम या ज्यादा गंभीर हो सकते हैं।
लगभग 8% पिता पैतृक अवसाद यानि पोस्टपार्टम डिप्रेशन का अनुभव करते हैं। दुर्भाग्य से, पुरुषों में प्रसवोत्तर अवसाद के कई मामलों का निदान नहीं हो पाता है इसलिए शीघ्र निदान और हस्तक्षेप पिता और परिवार के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। दबे या खुले शब्दों में कहा जाए तो पुरुषों में यह समस्या इस कारण होती है क्योंकि उनके ऊपर अब एक नई जिम्मेदारी आ चुकी है जिसको उन्हें उम्र भर निभाना होगा, साथ ही अपनी संतान को वो सब सुविधाएं देनी होंगी जो कि शायद उन्हें नहीं मिल पाई होंगी। कई कारक पोस्टपार्टम डिप्रेशन के विकास या बिगड़ने में योगदान कर सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य रूप से शामिल है :-
पहले कभी डिप्रेशन का सामना किया हो
हमेशा से सामान्य से ज्यादा चिंता करते हो
अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ होना
सामान्य से ज्यादा शराब या अन्य मादक उत्पादों का सेवन करना
उदास होने या कोई चिंता करने पर विशेष रूप से शराब का सेवन करना
सामाजिक समर्थन की कमी का सामना
कम आय या वित्तीय तनाव
अपनी पत्नी के साथ खराब रिश्ता
अगर शिशु की माँ पहले ही प्रसवोत्तर अवसाद से जूझ रही हो
अगर पिता की आयु काफी कम हो
बच्चे से अलग घर में रहना
एक से ज्यादा बच्चे होने पर
अगर मनचाही संतान की प्राप्ति न होने पर – यह समस्या भारत में काफी देखि जाती है क्योंकि यहाँ बेटे की चाह ज्यादा होती है।
लगातार काम में लगे रहना जिसकी वजह से बच्चे से दूर रहना
बच्चा किसी शारीरिक समस्या के साथ पैदा होना
बच्चे के जन्म के बाद जीवन हुए बदलाव के कारण
बच्चे के जन्म के बाद साथी के साथ रिश्तों में कमजोरी आना
शिशु के जन्म के बाद सेक्स में कमी आना
प्रसवोत्तर अवसाद महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए अलग तरह से प्रकट हो सकता है।
महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद भी लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहना पड़ता है और उन्हें अपनी और बच्चे की जांच करवानी पड़ती है। ऐसे में महिलाओं में प्रसवोत्तर अवसाद यानि पोस्टपार्टम डिप्रेशन की जांच कर पाना काफी आसान होता है, लेकिन पुरुषों के साथ ऐसा होना काफी मुश्किल होता है। इसी कारण पुरुषों में पोस्टपार्टम डिप्रेशन की रिपोर्ट होना महिलाओं के मुकाबले काफी कम है। यही वजह है कि पुरुषों में प्रसवोत्तर अवसाद का निदान आसानी से नहीं किया जा सकता है और इसका इलाज नहीं किया जा सकता है।
यदि आप एक नए पिता हैं जो अवसाद के लगातार और निरंतर लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, तो आप अपने साथी, डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर को सूचित करना चाहिए। डिप्रेशन अपने आप दूर नहीं होता है, इसलिए जितनी जल्दी आपको निदान किया जाता है, उतनी ही जल्दी आप उपचार शुरू कर सकते हैं और लक्षणों से राहत पा सकते हैं।
महिलाओं में जहाँ पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जबकि पुरुषों में केवल मानसिक लक्षण ही दिखाई देते हैं। इसकी वजह से पुरुषों में इस अवसाद के बाद कोई शारीरिक जाँच नहीं की जाती। यहाँ तक कि पुरुषों को खुद पता नहीं होता कि वह पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पुरुष हर समस्या का खुद मुकाबला करते हैं और अपनी हर समस्या के बारे में हर किसी को नहीं बताते। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह खुद ही हर समस्या का सामना कर लेंगे। ऐसा होने पर उनकी समस्या कम होने की जगह उल्टा और भी ज्यादा बढ़ जाती है।
इसलिए पुरुषों को इस फ़िल्मी लाइन “मर्द को कभी दर्द नहीं होता” पर ज्यादा विश्वास न करते हुए अपनी समस्या के बारे में बात करनी चाहिए।
प्रसवोत्तर अवसाद का उपचार नैदानिक अवसाद के उपचार के समान है। आपकी स्थिति और आपके अवसाद की गंभीरता के आधार पर, आपको दवा, चिकित्सा या दोनों का संयोजन निर्धारित किया जा सकता है। सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर Serotonin Reuptake Inhibitors (SSRI) आमतौर पर प्रसवोत्तर अवसाद के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं हैं। पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझने वाले पुरुषों के लिए एंटीडिप्रेसेंट और अन्य दवाओं पर स्थिति के अनुसार भी विचार किया जा सकता है।
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) Cognitive Behavioral Therapy (CBT) और इंटरपर्सनल थेरेपी (आईपीटी) Interpersonal Therapy (IPT) ऐसी मनोचिकित्सा हैं जो कि प्रसवोत्तर अवसाद के लक्षणों को दूर करने के लिए जानी जाती हैं, लेकिन अधिकांश पुरुष व्यक्तिगत या युगल चिकित्सा पसंद करते हैं जो लक्षणों को दूर करने में मदद कर सकते हैं।
पसंदीदा उपचार से कोई फर्क नहीं पड़ता, पुरुष सहायता समूहों या शैक्षिक कक्षाओं से लाभ उठा सकते हैं, खासकर यदि वे साथी हैं तो वे भी प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित हैं या यदि उन्हें दोस्तों, परिवार या समुदाय के सदस्यों से समर्थन की कमी है। सर्वोत्तम सफलता के लिए, देखभाल के पिता के अनुरूप मॉडल पर विचार किया जाना चाहिए।
जब पुरुष प्रसवोत्तर अवसाद यानि पोस्टपार्टम डिप्रेशन से पीड़ित होते हैं, तो यह उनके कार्य करने की क्षमता और अपने साथी और बच्चे की ठीक से देखभाल करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इससे न केवल एक पुरुष बल्कि पुरे परिवार पर इसका बुरा असर पड़ता है, ऐसे में पीड़ित को जल्द से जल्द इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए काम शुरू कर देना चाहिए। इस समस्या का मुकाबला करने के लिए पुरुष कई तरह के उपाय अपना सकते हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित है :-
नियमित रूप से व्यायाम करना
स्वस्थ भोजन खाना
स्वस्थ नींद की आदतों को बनाए रखना
भावनाओं के बारे में बात करना और व्यक्त करना
आप इस बात को ध्यान रखें कि हर दिन अच्छा या बुरा नहीं होता। परिवर्तन में विश्वास रखें और सकारात्मक सोच बनाएं रखें।
आप अपने खाने का विशेष ध्यान रखें।
परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहें, खुद को अलग बिलकुल न करें।
जब आपका शिशु सोए तब सोएं या आराम करें।
अपने पहले बच्चे के साथ समय बिताएं।
स्थिति को समझ नहीं पा रहे हैं तो अपने दोस्तों या परिवार के साथ कहीं दूर घुमने जाएं।
पुरुषों के लिए, मदद मांगना मुश्किल हो सकता है, खासकर जब उनका साथी इतने सारे बदलावों से गुजर रहा हो और उन्हें उनके समर्थन की जरूरत हो। जबकि बच्चे के जन्म के बाद अपने साथी और बच्चे की देखभाल करना महत्वपूर्ण है, पिता को अपनी मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पहचानने और अवसाद के लक्षणों से निपटने के लिए स्वस्थ तरीके खोजने की जरूरत है। किसी थेरेपिस्ट से बात करना या अन्य पिताओं के सहायता समूह में शामिल होना मदद कर सकता है।
Mr. Ravi Nirwal is a Medical Content Writer at IJCP Group with over 6 years of experience. He specializes in creating engaging content for the healthcare industry, with a focus on Ayurveda and clinical studies. Ravi has worked with prestigious organizations such as Karma Ayurveda and the IJCP, where he has honed his skills in translating complex medical concepts into accessible content. His commitment to accuracy and his ability to craft compelling narratives make him a sought-after writer in the field.
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