सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश भर में टू-फिंगर जांच को पूरी तरह से बैन कर दिया है और इसे बैन करते हुए काफी तीखी टिप्पणी भी की। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार को कि दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि दुष्कर्म पीड़िताओं के परीक्षण की ‘टू-फिंगर’ प्रणाली समाज में आज भी व्याप्त है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य से कहा कि अब यह परीक्षण नहीं होना चाहिए। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने बलात्कार और हत्या की घटना के एक दोषी को बरी करने के झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और उसे गुनहगार करार देने के एक निचली अदालत के फैसले को कायम रखा।
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के एक दशक पुराने एक फैसले में ‘टू-फिंगर परीक्षण’ को महिला की गरिमा और निजता का उल्लंघन बताया गया था। पीठ ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य की बात है कि यह प्रणाली अब भी व्याप्त है। महिलाओं का गुप्तांग संबंधी परीक्षण उनकी गरिमा पर कुठाराघात है। यह नहीं कहा जा सकता कि यौन संबंधों के लिहाज से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता।’’
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों को कुछ निर्देश जारी किये और राज्यों के पुलिस महानिदेशकों तथा स्वास्थ्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने को कहा कि ‘टू-फिंगर परीक्षण’ नहीं कराया जाए। अदालत ने कहा कि ‘टू-फिंगर’ परीक्षण करने वाले किसी भी व्यक्ति को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा। पीठ ने केंद्र और राज्य के स्वास्थ्य सचिवों को निर्देश दिया कि सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम से ‘टू-फिंगर’ परीक्षण से संबंधित अध्ययन सामग्री को हटाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, टू फिंगर टेस्ट इस पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित है कि यौन रूप से सक्रिय महिला से रेप नहीं हो सकता। इतना ही नहीं SC ने आरोपी को बरी करने के हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया है और आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। एक मामले में फैसला सुनाते हुए एक दोषसिद्धि को बहाल करते हुए टू-फिंगर टेस्ट पर नाराजगी जाहिर करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा पीड़िता के यौन इतिहास के साक्ष्य मामले के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं।
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