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त्रिदोष क्या है? विस्तार से जाने | What is Tridosha in Hindi

Published On: 03 Mar, 2022 12:30 PM | Updated On: 16 May, 2024 2:22 AM

त्रिदोष क्या है? विस्तार से जाने | What is Tridosha in Hindi

आयुर्वेद समग्र चिकित्सा के विश्व के सबसे पुराने रूपों में से एक है और आज भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को मिलाकर आयुर्वेद पूरे शरीर की चिकित्सा पर ध्यान केंद्रित करता है और कहता है कि एक व्यक्ति का दोष, एक प्रकार की शारीरिक मनोवृति, उनके व्यक्तित्व और स्वास्थ्य को निर्धारित करता है। यद्यपि आयुर्वेद अंग्रेजी में आयुर्वेद का अनुवाद "जीवन के विज्ञान" के रूप में किया गया है। अगर आप आयुर्वेद में विश्वास रखते हैं या आयुर्वेद में रूचि रखते तो आप निश्चित ही दोष के बारे में थोड़ा बहुत जानते ही होंगे, जिन्हें हम त्रिदोष के नाम से भी जानते हैं, जिसमें वात, पित्त और कफ शामिल है। भले ही हजारों वर्षों से आयुर्वेद त्रिदोष के सिद्धांत पर उपचार प्रदान कर रहा है, लेकिन अभी भी लोगों को इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। अगर आप भी इस विषय में ज्यादा नहीं जानते तो Medtalks पर त्रिदोष के विषय में लिखे इस ब्लॉग को आपको आखिर तक पढ़ना चाहिए।

त्रिदोष क्या है? What is Tridosha? 

आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है जो कि जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु है। इन पांच तत्वों को पंच महाभूत के नाम भी जाना जाता है और यही पंच महाभूत (Panch Mahabhoot) हमारे शरीर के सूक्ष्म उर्जा (subtle energy) के स्त्रोत है। धार्मिक दृष्टिकोण में भी इन पंच महाभूतों का काफी महत्व है, क्योंकि हमारे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति इन्हीं चीजों के मेल से हुई है और इन्हीं के मेल से हमारे शरीर की उत्पत्ति हुई है। यह पांच महाभूत हमारे शरीर में आपस में तालमेल बना कर रहते हैं और शरीर को स्वस्थ बनाए रखते हैं। इन्हीं पंच महाभूतों के मेल से दोषों का जन्म होता है। एक दोष का जन्म दो महाभूतों के मेल से होता है, जिसे नीचे बताया गया है :-

  1. वात दोष – वायु व आकाश 

  2. पित्त दोष – अग्नि व जल 

  3. कफ दोष – पृथ्वी व जल 

वाता, पित्त और कफ यह तीनों हमारे शरीर में संतुलित मात्रा में मौजूद होते हैं, लेकिन अगर इन तीनों में अगर कोई भी तत्व बढ़ जाए या कम हो जाए तो उसकी वजह से हमें कई शरीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन तीनों के संतुलन में होने वाली गड़बड़ियों के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं की वजह से इन्हें दोष कहा जाता है। यह दोष संख्या में तीन होने की वजह से इन्हें सामूहिक तौर पर त्रिदोष कहा जाता है। आयुर्वेद इस बात को सपष्ट रूप से मानता है कि अगर इन तीनों दोषों में किसी भी एक दोष का संतुलन बिगड़ता है तो कई शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न होना लाजमी है जो कि सामान्य से गंभीर और गंभीर से अति गंभीर तक हो सकती है। चलिए एक-एक करके इन तीनों दोषों के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

वाता दोष क्या है? What is Vata Dosha?

वाता दोष सबसे प्रमुख दोष माना गया है। इस दोष का निर्माण “वायु और आकाश” तत्व के मेल से होता है। हमारे शरीर के अंदर होने वाली सभी उन सभी गतिविधियों जिसमें गतिशीलता या मूवमेंट होती है वह वाता के कारण होते है। सरल शब्दों में कहा जाए तो जो तत्व शरीर में गति या उत्साह उत्पन्न करे वह ‘वात’ या ‘वायु’ कहलाता है।  वाता शरीर में गतियों को होने में सहायता करता है, जैसे रक्त संचार। हमारे शरीर में बहने वाला रक्त वाता के कारण एक स्थान से दुसरे स्थान पर प्रवाहित होता। इतना ही नहीं शरीर में मौजूद सभी धातुएं भी अपना-अपना काम इसी वाता के कारण कर पाते हैं और शरीर के किसी एक अंग का दूसरे अंग के साथ जो संपर्क है वो भी वात के कारण ही संभव है।

वाता दोष ही सभी दोषों को बढ़ाने का कारण भी बनता है। यह दोष वायु है और वायु सभी चीजों को बढ़ाने में और खराब करने में काफी तेजी से काम करती है। उदहारण के लिए अगर कहीं पर आग लगी है और वहां पर हवा चल जाए तो आग बड़ी तेजी से बढ़ने लग जाती है। ठीक ऐसा ही वाता दोष पित्त दोष को बढ़ाने में करता है। जिस व्यक्ति के शरीर में वात दोष ज्यादा होता है वो वात प्रकृति वाला कहलाता है।

वात दोष शरीर में निम्नलिखित स्थान पर होता है –

  1. कमर

  2. जांघ

  3. टांग 

  4. हड्डियाँ 

  5. कोलन या पेट – यह सबसे प्रमुख स्थान है।

  6. नाभि से नीचे का भाग

  7. छोटी व बड़ी आंतें

वाता दोष वाले व्यक्ति कैसे होते हैं?  How are people with vata dosha?

अगर किसी व्यक्ति के शरीर में वाता दोष संतुलित है तो वह बाकी लोगों की तुलना में जल्दी से सभी चीजों को सीख लेते हैं, अत्यधिक रचनात्मक होते हैं, मल्टीटास्कर होता हैं। ऐसे व्यक्ति दयालु परवर्ती के होते हैं और काफी लचीले होते हैं और इनका शरीर पतला होता है।  

वाता दोष के क्या लक्षण है? What are the symptoms of Vata dosha? 

अगर किसी व्यक्ति के शरीर में वाता दोष असंतुलित है तो उसे कई शारीरिक और मानसिक समस्याएँ हो सकती है। इन समस्याओं को वाता दोष बिगड़ने के लक्षण के तौर पर भी देखा जाता है, जिन्हें निम्नलिखित किया गया है :- 

शारीरिक लक्षण – 

  1. क़ब्ज़ होना

  2. गैस की समस्या 

  3. शरीर में पानी की कमी

  4. सूखी और रूखी त्वचा

  5. शरीर में लगातार दर्द बने रहना 

  6. मुह में खट्टा व कसैला स्वाद आना

  7. कमज़ोरी, थकान, ओज की कमी

  8. ठीक से नींद न आना 

  9. शरीर के अंगो में कंपन बने रहना

  10. हमेशा भ्रमित, डर और घबराहट महसूस होना  

  11. सामान्य से ज़्यादा ठण्ड लगना

मानसिक लक्षण – 

  1. जीवन के प्रति निराशा

  2. चिंतित बने रहना

  3. हमेशा अधीरता का भाव बने रहना

  4. हर समय अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते रहना

  5. सब कुछ महत्वहीन लगना

  6. लोगों से बात करने की इच्छा रहना 

  7. अकेलेपन का एहसास बने रहना 

वात बढ़ने के कारण क्या है? What is the reason for increasing Vata?

वाता दोष बढ़ने के वैसे तो बहुत से कारण हो सकते हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से हमारी खराब आदतों, खानपान और हमारे स्वभाव की वजह से ज्यादा बढ़ता है। मुख्य रूप से वाता दोष बढ़ने के पीछे निम्नलिखित कारण है :- 

  1. मल-मूत्र रोकने की आदत 

  2. छींक को रोकने की आदत 

  3. देर रात तक जागने की आदत 

  4. मुह खोलकर रखने की आदत 

  5. सोते समय खर्राटे लेने की वजह से 

  6. हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना

  7. ज्यादा सेक्स करना

  8. ज्यादा ठंडी चीजें खाना

  9. ज्यादा भूखा रहने के कारण 

  10. खाना खाने के तुरंत बाद फिर से खाना लेने कारण (सामान्य भाषा में ज्यादा खाना लेना)

  11. तेज बोलने की आदत के कारण 

  12. अपनी शारीरिक क्षमता से ज्यादा काम करना

  13. किसी भी सफ़र के दौरान गाड़ी से तेज झटके लगना

  14. तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन करने की आदत

  15. सामान्य से बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना

ऊपर बताए गये इन कारणों के अलावा बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में सामान्य रूप से वाता दोष बढ़ सकता है। 

वाता दोष की वजह से क्या समस्याएँ होती है? What problems do vata dosha cause?

वाता दोष की वजह से एक व्यक्ति को निम्नलिखित बिमारियों या समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है :- 

  1. ऐठन बने रहना 

  2. कंपकपी 

  3. कमज़ोरी

  4. पेट दर्द

  5. मरोड़ की समस्या होना 

  6. शुष्की

  7. मांसपेशियों में थकान बनना 

  8. जोड़ों में दर्द बनना – खासकर घुटनों में (इसकी वजह से गठिया हो सकता है)

  9. शरीर में जकड़न की समस्या होना 

  10. हर समय या अचानक से सिर दर्द होना 

  11. लगातार क़ब्ज़ की समस्या रहना  

  12. वजन कम होना (इस स्थिति में कई बार शरीर मोटा तो दिखाई देता है, लेकिन शरीर का वजन कम रहता है)।

वाता दोष को संतुलित रखने के लिए इस तरह खाएं Eat this way to balance Vata dosha –

इन्हें खाएं – गर्म, "नम", और नरम खाद्य पदार्थ को अपने आहार में शामिल करें। इनमें आप जामुन, केले, आड़ू, पकी हुई सब्जियां, जई, ब्राउन राइस, मांस, अंडे और दुग्ध उत्पाद ले सकते हैं। ऐसे में आप प्रोटीन युक्त आहार भी ले सकते हैं। 

इनसे दूर रहें – कड़वे, सूखे और ठंडे खाद्य पदार्थों से दूर रहें। जैसे –  कच्ची सब्जियां, ठंडी मिठाइयाँ, सूखे मेवे, मेवे, बीज आदि। 

तेजी से फायदा उठाने के लिए आप जमीन पर बैठ कर खाना लें और नंगे पाँव चलें खास कर हरी घास पर। अन्य उपायों के लिए आप किसी विशेषज्ञ से भी इस संबंध में सलाह ले सकते हैं। 

पित्त दोष क्या है? What is Pitta Dosha?

मोटे तौर पर कहा जाए तो पित्त आग है। हालाँकि, इस शब्द का शाब्दिक अर्थ आग नहीं है, जिस तरह से आप इसे मोमबत्ती की रोशनी या खुली आग के रूप में अनुभव या महसूस कर सकते हैं। पित्त दोष और कुछ नहीं बल्कि शरीर में ऊष्मा ऊर्जा है जो कि अदृश्य है। पित्त हमारे चयापचय में हमेशा रहती है। जब हमारा भोजन पेट और आंत में टूट जाता है, जब एंजाइम बनते हैं या अंतःस्रावी ग्रंथियों (endocrine glands) से हार्मोन रक्तप्रवाह में निकलते हैं जहाँ पित्त हमेशा शामिल होता है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। इसका अर्थ यह भी है कि सभी के पास पित्त जैव-ऊर्जा है, जो मुख्य रूप से अग्नि तत्व से बनी है।  पित्त दोष भी दो तत्वों के मेल से बनता है, इसमें “अग्नि और जल” तत्व शामिल हैं। शरीर की गर्मी जैसे कि शरीर का तापमान, पाचक अग्नि जैसी चीजें पित्त द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। पित्त का संतुलित अवस्था में होना अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है। शरीर में पेट और छोटी आंत में पित्त प्रमुखता से पाया जाता है।

पित्त दोष शरीर में निम्नलिखित स्थान पर होता है –

  1. पेट व छोटी अंत – यह पित्त का मुख्य स्थान है। 

  2. छाती व नाभि – यह पित्त का मध्य स्थान है। 

  3. पसीना 

  4. लिम्फ

  5. खून

  6. पाचन तनत 

  7. मूत्र स्थान 

  8. जननांग – Genital

पित्त दोष वाले व्यक्ति कैसे होते हैं?  How are people with Pitta dosha?

जिन लोगों में पित्त दोष ज्यादा प्रभावी होता है वह बाकी लोगों के मुकाबले काफी ज्यादा शक्तिशाली बुद्धि और महत्वाकांक्षी होते हैं। ऐसे लोग जन्म से ही प्रभावी पथ प्रदर्शक होते हैं जिन्हें आम भाषा में नेता या लीडर भी कहा जा सकता है। यह लोग ऊर्जा और ताकत से भरपूर और पूर्णतावादी होते हैं/ ऐसे लोग काफी जुनूनी होते हैं, यह अपने लक्ष्य को जितने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। पित्त वाले लोग चुनितियों से बहुत प्यार करते हैं और अपने साथी से भी अटूट प्यार करते हैं या कहा जाए कि यह इमानदार प्रवृति वाले होते हैं। इनका शरीर एथलेटिक होता है और यह सामान्य तौर पर उग्र होते हैं और इन्हें बहुत जल्दी गुस्सा भी आ जाता है। इनके पैर और हाथ कभी तनदे नहीं होते। ऐसे लोगों को मीठी चीज़े खाना बहुत पसंद होता है और यह लोग कड़वी चीजों से परहेज करना पसंद करते हैं। 

क्या पित्त दोष कई प्रकार का होता है? Are there many types of pitta dosha?

हाँ, पित्त दोष भिन्न प्रकार का होता है। शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर पित्त को पांच भांगों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित है :- 

  1. साधक पित्त

  2. आलोचक पित्त

  3. भ्राजक पित्त

  4. पाचक पित्त

  5. रज्जक पित्त

पित्त दोष के क्या लक्षण है? What are the symptoms of Pitta dosha? 

अगर किसी के शरीर में पित्त दोष असंतुलित हो जाए तो निम्नलिखित प्रकार के लक्षण दिखाई दे सकते हैं :- 

शारीरिक लक्षण –

  1. अधिक भूख-प्यास लगना

  2. सीने में जलन बनना – एसिडिटी 

  3. आँखे, हाथों व तलवों में जलन बने रहना

  4. सामान्य से बहुत गर्मी लगाना

  5. हर समय पसीने आना – ऐसा सर्दी के मौसम में भी हो सकता है

  6. त्वचा से जुड़ी समस्याएँ होना जैसे – चेहरे पर दाने, मुहाँसे, फुंसी और अन्य समस्याएँ

  7. पित्त की उल्टी होना

  8. प्रकाश के प्रति अति संवेदनशीलता

  9. शरीर से और मुह से तीक्ष्ण गंध  

  10. बहुत ज्यादा सिर दर्द होना 

  11. जी मचलाना या उलटी जैसा मन होना

  12. दस्त होने की समस्या 

  13. मुख में कड़वा स्वाद बने रहना  

  14. ज़्यादा गर्मी लगना और ठंडे वातावरण की चाह

व्यवहारिक लक्षण –

  1. बोल चाल उग्र होना

  2. काम करने में चिड़चिड़ाहट होना

  3. हमेशा गुस्सा आना 

  4. हर किसी के साथ आक्रामक होना

  5. विवाद करने के लिए हर समय तैयार रहना

  6. अधीरता और हड़बड़ाहट रहना

  7. हर समय निराशा का भाव रहना

  8. इनका मूड बहुत जल्दी बदलता है

पित्त दोष के क्या कारण है? What is the cause of Pitta dosha? 

जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ने लगती है वैसे-वैसे उनके शरीर में पित्त दोष सामान्यतः बढ़ने लग जाता है। पित्त दोष की समस्या सामान्य रूप से किशोरों में ज्यादा पाई जाती है। इसके अलावा जैसे-जैसे जाड़ों का मौसम आने लगता है प्राकृतिक रूप से ही शरीर में पित्त दोष बढ़ना शुरू कर देता है। इनके अलावा पित्त दोष बढ़ने के पीछे निम्नलिखित कारण होते हैं :- 

  1. चटपटे, नमकीन, मसालेदार और तीखी खाने की चीजों का ज्यादा सेवन करने की वजह से। 

  2. सामान्य से जायदा मेहनत करने की आदत। 

  3. हमेशा मानसिक तनाव और गुस्से में रहने की आदत। 

  4. ज्यादा शराब या अन्य नशीली चीजों का सेवन करना।

  5. उचित समय पर खाना न लेना। 

  6. बिना भूख के ही खाना ले लेना या ज्यादा खाना लेने के कारण।

  7. हर थोड़े दिनों में सेक्स करना।

  8. तेल और घी का ज्यादा सेवन करना। मुख्य रूप से तिल और सरसों के तेल का ज्यादा सेवन।

  9. दही, खट्टी छाछ, सिरका और अन्य खट्टी चीजों का ज्यादा सेवन करना। 

  10. मांस का अधिक सेवन करना। 

पित्त दोष के कारण क्या शारीरिक समस्याएँ हो सकती है? What physical problems can occur due to pitta dosha? 

अगर आप पित्त दोष से जूझ रहे हैं तो आपको निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह समस्याएँ सामान्य से लेकर अति गंभीर तक हो सकती है। 

  1. शरीर में कई जगह पर सूजन आना

  2. अत्यधिक एसिडिटी की समस्या 

  3. रक्त स्राव की समस्या होना 

  4. हाई ब्लड प्रेशर की समस्या – इसकी वजह से किडनी पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है।

  5. शरीर में जलन बने रहना  जो कि मुख्य रूप से – सीने में, पेट में, हाथ-पैरों में और मूत्र मार्ग में भी हो सकती है।

  6. सामान्य से अधिक मल त्याग करना – इसमें पेट खराब भी हो सकता है।

  7. त्वचा में चकत्ते, फुंसी, मुसंहों के अलावा अन्य त्वचा संबंधित समस्याएँ होना।

  8. किसी भी चीज़ की अचानक से तेज इच्छा होना।

  9. गर्दन से जुड़ी बीमारी

  10. पीलिया की बीमारी भी है पित्त दोष का कारण

  11. मधुमेह और पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारी

  12. नाभि के आसपास मरोड़े आना

  13. पुरुषों में स्वप्न दोष की समस्या

  14. महिलाओं की बीमारी – जैसे मूत्र पथ संक्रमण 

पित्त दोष को संतुलित रखने के लिए इस तरह खाएं Eat this way to balance Pitta dosha –

इन्हें खाएं – 

  1. घी का सेवन जरूर करें। सबसे बेहतर गाय का घी हैं। 

  2. गोभी, खीरा, गाजर, आलू, शिमला मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।

  3. सभी तरह की दालों का सेवन करें।

  4. एलोवेरा जूस, अंकुरित अनाज, सलाद और दलिया का सेवन करें। 

  5. ठंडी चीजों का सेवन करें।

  6. पानी खूब मात्रा में पीना चाहिए।

इनसे दूर रहें – 

  1. मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करना चाहिए करें।

  2. तिल के तेल, सरसों के तेल से परहेज करें।

  3. काजू, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट और बिना छिले हुए बादाम से परहेज करें। सामान्य रूप से सूखे मेवों से दूरी बना कर रखे। 

  4. संतरे के जूस, टमाटर के जूस, कॉफ़ी और शराब से परहेज करें।

  5. खट्टे फलों और अन्य खट्टी चीजों से दूर रहें। 

  6. ज्यादा मीठी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। 

  7. तेज मसालेदार खाना नहीं लेना चाहिए। 

खाने पीने के इन उपायों के अलावा ऐसे लोगों को ठन्डे पानी से नहाना चाहिए, अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करनी चाहिए और शांत संगीत सुनने की आदत डालनी चाहिए। ऐसे लोगों को सेक्स करना काफी पसंद होता है, सरल शब्दों में कहा जाए तो इनकी वासना हमेशा बढ़ी हुई होती है तो ऐसे लोगों को अपनी वासना को भी काबू में रखने की कोशिश करनी चाहिए। 

कफ दोष क्या है? What is Kapha Dosha?

कफ जल और पृथ्वी तत्वों का योग है, यह छाती क्षेत्र में स्थित होता है। यह जैव-ऊर्जा जीव के लिए संरचना-निर्माण सिद्धांत है और विशेष रूप से सामंजस्य, स्थिरता और ऊर्जा भंडारण से जुड़ा है। काफ दोष लोगों को पदार्थ और ताकत प्रदान करता है। कफ विभिन्न प्रकार के ऊतकों के भौतिक विकास में शामिल होता है। आध्यात्मिक स्तर पर, यह मुख्य रूप से प्रेम, साहस, सहनशक्ति, समर्पण, क्षमा और स्थिरता जैसे शब्दों से जुड़ा है। भारतीय संस्कृति में इस जैव-ऊर्जा को लोगों में ताकत का वादा माना जाता है। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है।


हमारे शरीर में कफ का मुख्य स्थान पेट और छाती है। इसके अलवा गले का ऊपरी भाग, कंठ, सिर, गर्दन,  हड्डियों के जोड़, पेट का ऊपरी हिस्सा और वसा भी कफ के निवास स्थान हैं।

कफ दोष शरीर में निम्नलिखित स्थान पर होता है –

  1. हमारे शरीर में कफ दोष मुख्य रूप से और सबसे ज्यादा पेट और छाती में रहता है। 

गले के ऊपरी हिस्सों में कफ दोष मिलता है जो कि निम्न है – 

  1. गले का ऊपरी भाग 

  2. कंठ 

  3. सिर

  4. गर्दन

इसके अलावा यहाँ भी कफ दोष रहता है – 

  1. सभी हड्डियों के जोड़

  2. पेट का ऊपरी हिस्सा 

  3. नाक 

  4. वसा में भी कफ दोष पाया जाता है। 

कफ दोष वाले व्यक्ति कैसे होते हैं?  How are people with Kapha dosha?

जिन लोगों में कफ उर्जा ज्यादा होती है वह मुख्य रूप से काफी महान माने जाते हैं, साथ ही उनके द्वारा किये गये काम काफी अच्छी तरह से किये जाते हैं और उन्हें पूरा किया जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो उनके द्वारा किये गये किसी भी काम को नाकारा नहीं जा सकता। कल दोष वाले व्यक्ति कभी-कभी अन्य लोगों के लिए धीमे या आलसी और कठिन दिखाई दे सकते हैं, लेकिन उनके पास असाधारण सहनशक्ति और ताकत होती है। एक बार जब कफ प्रकार के लोगों की दृष्टि में एक नया उद्देश्य होता है, तो वह एक सफल परिणाम प्राप्त करने तक धैर्य और दृढ़ता के साथ उसका पीछा करते हैं। पित्त प्रवृति वाले लोगों को खाने से भी बहुत ज्यादा प्यार होता है। यही कारण है कि यह लोग सामान्य से ज्यादा मोटे होते हैं और इनका वजन भी तेजी से बढता है। इन सबसे ऊपर, कफ व्यक्तित्व आंतरिक शांति, शांति और सद्भाव को महत्व देते हैं। मुख्य रूप से ऐसे लोग जियो और जीने दो की भवना में विश्वास रखते हैं। यह लोग जीवन में छोटी-छोटी चीजों का आनंद लेने में भी सक्षम होते हैं। यह बड़ी आसानी से प्रसन्न होते हैं और उन चीजों से प्यार करते हैं जिन्हें आजमाया और परखा गया है। एक स्थिर साझेदारी में निजी आनंद, स्वस्थ बच्चे और वफादार दोस्ती वह चीजें हैं जिन्हें कफ प्रवृति वाले रोग प्राथमिकता देते हैं और जो उन्हें आंतरिक संतुष्टि, सुरक्षा और व्यक्तिगत खुशी देती हैं। 

कफ दोष के कितने प्रकार होते हैं? How many types of Kapha dosha are there? 

पित्त दोष की भाँती कफ दोष भी शरीर के अलग-अलग स्थानों पर होता है जिसकी वजह से आयुर्वेद में इसके पांच प्रकार वर्णित है जो कि निम्नलिखित है :-

  1. क्लेदक Kledak

  2. अवलम्बक Incumbent

  3. बोधक Perceptible

  4. तर्पक Logician

  5. श्लेषक Mucus

आपको जानकार हैरानी होगी कि आयुर्वेद में कफ दोष की वजह से होने वाली बीमारियों की संख्या 20 है जो कि बाकी दोषों से होने वाली बीमारियों की तुलना में सबसे ज्यादा है।

कफ दोष के लक्षण क्या है? What are the symptoms of Kapha dosha?

कफ दोष होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं जो कि बाकी दोषों की तरह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से दिखाई देते हैं। 

शारीरिक लक्षण – 

  1. हर समय आलस्य  

  2. भारीपन होना

  3. भूख न लगना – लेकिन फिर भी खाना लेते रहना

  4. जी मचलना

  5. उलटी आना

  6. शरीर में पानी जमा हो जाना

  7. जकड़न होना

  8. बलगम बनना – इसकी वजह से अक्सर खांसी हो सकती है और नजले की शिकायत भी हो सकती है।

  9. मुँह में स्राव Mouth discharge

  10. साँस लेने में तकलीफ़ होना – ऐसे में दमे की समस्या भी हो सकती है। 

  11. अत्यधिक नींद आना जो कि आलस का सबसे बड़ा संकेत है।  

  12. मुँह में मीठापन महसूस होना

  13. अंगों का ढीलापन

  14. सेक्स में समस्याएँ होना 

  15. आंखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव

  16. शरीर में गीलापन महसूस होना  

  17. मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन

व्यवहारिक लक्षण –

  1. अवसाद Depression  

  2. दुःख का भाव बने रहना

  3. काम में मन न लगना 

  4. दूसरों पर आश्रित रहना – ऐसे लोग खुद को हमेशा अकेला महसूस करते हैं।

  5. हमेशा खुद को दुसरो से कमजोर समझने का भाव।

  6. लालच होना

  7. मोह की भावना जागना। 

कफ दोष का कारण क्या है? What is the cause of Kapha dosha?

कफ दोष मुख्य रूप से छोटे बच्चों और वृद्ध लोगों में ज्यादा पाया जाता है। सर्दियों के मौसम में और मार्च-अप्रैल के महीले में, सुबह और शाम के समय कफ दोष स्वाभाविक रूप से ज्यादा बढ़ा हुआ होता है। इसके अलावा ज्यादा ठंडी चीजों का सेवन करने, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ दोष असंतुलित हो सकता है। इसके अलावा निम्नलिखित कारणों के चलते कफ दोष बढ़ सकता है या असंतुलित हो सकता है :- 

  1. मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन।

  2. मांस-मछली का अधिक सेवन करने की आदत। 

  3. ठंडी या समुद्री इलाकों में रहने के कारण। 

  4. तिल से बनी चीजें का अधिक सेवन करने के कारण।

  5. गन्ना या गन्ने से बनी चीजों का ज्यादा सेवन।

  6. दूध और दुश से बनी चीजों का अधिक सेवन। 

  7. सामान्य से ज्यादा नमक का सेवन।

  8. फ्रिज में रखा पानी पीने या अन्य खाद्य उत्पाद का सेवन करने के कारण। 

  9. आलसी स्वभाव और रोजाना व्यायाम ना करना।

  10. दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, सभी तरह के पेठे आदि का सेवन।

कफ दोष को संतुलित रखने के लिए इस तरह खाएं Eat this way to balance Kapha dosha –

इन्हें खाएं – 

  1. इन अनाजों का सेवन करें – बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा, ब्राउन राइस ,राई।

  2. इन सब्जियों का सेवन मुख्य रूप से करें – पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि।

  3. जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें। गाय का घी भी ले सकते हैं।

  4. छाछ और पनीर का सेवन करें। छाछ का सेवन दिन के समय ही करें।

  5. तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें। ठन्डे खाने से परहेज करना चाहिए।

  6. सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं। कच्चे खाने से दूरी बना कर रखें।

  7. नमक का सेवन सिमित मात्रा में ही करें। साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का सेवन करें। 

  8. पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें। 

इनसे दूर रहें – 

  1. मैदे और इससे बनी चीजों का सेवन ना करें।

  2. एवोकैड़ो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।

  3. केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।

इन सभी खाद्य उपायों के अलावा आप अपने जीवन में भी कुछ बदलाव जरूर करें। इसके लिए आप पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें, गुनगुने पानी से नहायें, रोजाना कुछ देर धूप में टहलें। इसके साथ ही रोजाना व्यायाम करें और ठण्ड के मौसम में गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें। आलस से जितना हो सके उतना दूर रहना चाहिए और चिंता नहीं करनी चाहिए। अपने आप को सकारात्मक भाव से लबालब रखें और दोस्तों के साथ समय बिताएं।


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